योगासन एवं आसन के मुख्य प्रकार

चित्त को स्थिर रखने वाले तथा सुख देने वाले बैठने के प्रकार को आसन कहते हैं। आसन अनेक प्रकार के माने गए हैं। योग में यम और नियम के बाद आसन का तीसरा स्थान है

आसन का उद्‍येश्य : आसनों का मुख्य उद्देश्य शरीर के मल का नाश करना है। शरीर से मल या दूषित विकारों के नष्ट हो जाने से शरीर व मन में स्थिरता का अविर्भाव होता है। शांति और स्वास्थ्य लाभ मिलता है। अत: शरीर के स्वस्थ रहने पर मन और आत्मा में संतोष मिलता है।

योग से रोग और शोक का निदान

।।ॐ।।योगश्चित्तवृत्तिनिरोध:।।ॐ।।

योग से चित्त वृत्तियों का निरोध किया जा सकता है। चित्त में ही रोग और शोक उत्पन्न होते हैं जो शरीर, मन और मस्तिष्क को क्षतिग्रस्त कर देते हैं। सदा खुश और हंसमुख रहना जीवन की सबसे बड़ी सफलता होती है।

योगा से हेयर केयर

बालों समस्या अब आम हो चली है। इसका कारण शहर का प्रदूषण, धूल, धुवां और दूषित भोजन-पानी। इस सबके कारण सिर से लेकर पांव तक त्वचा रुखी हो जाती है। रुखी त्वचा से जहां, डैंड्रफ और बालों से संबंधित अन्य रोग होते हैं वहीं यह चर्म रोग का कारण भी बन सकता है।

हालांकि बाल झड़ने का एक और कारण है- तनाव और अन्य मानसिक परेशानियां। आओ हम जानते हैं कि योग इस सबसे छुटकारा दिलाने में हमारी क्या मदद कर सकता है।

दर्शन में योग का महत्व

भारतीय धर्म और दर्शन में योग का अत्यधिक महत्व है। आध्या‍त्मिक उन्नत‍ि या शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिए योग की आवश्यकता व महत्व को प्राय: सभी दर्शनों एवं भारतीय धार्मिक सम्प्रदायों ने एकमत व मुक्तकंठ से स्वीकार किया है।

योग –एक वैज्ञानिक विवेचना

भारतीय दर्शन में मानव जीवन का लक्ष्य , धर्म, अर्थ, काम ,मोक्ष-ये चार पुरुषार्थ हैं, जिनमें अन्तिम लक्ष्य मोक्ष को परम पुरुषार्थ माना गया है। वेदिक व उपनिषदीय ज्ञान के अनुसार अन्तिम लक्ष्य अमृत प्राप्ति या मोक्ष है, यही वास्तविक मोक्ष है । योग शास्त्र के अनुसार ’ आत्मा का परमात्मा से मिलन’ ही योग है । जबकि गीता के अनुसार-’ योगः कर्मसु कौसलम”, प्रत्येक कर्म को कुशलता से, श्रेष्ठतम रूप से करना ही योग है। यही तो विज्ञान की मूल मान्यता है, वर्क इज़ वर्शिप’ ।

पवनमुक्तासन योग करने का तरीका

फर्श पर पेट के बल शवासन पोज़ में आराम से लेट जाइये।
अपने बाएं घुटने को मोड़िए और जितना संभव हो सके उसे पेट के पास तक ले आइये।
अब सांस छोड़ते हुए अपने दोनों हाथों की उंगलियों को आपस में फंसायें और घुटनों के नीचे रखिए और उनकी सहायता से अपने बाएं घुटने से सीने को छूने की कोशिश कीजिए।
इसके बाद अपना सिर जमीन से ऊपर उठाइये और घुटने से नाक से छूने की कोशिश कीजिए।
सिर को ऊपर उठाने और नाक को घुटनों से छूने के बाद 10 से 30 सेकेंड तक इसी मुद्रा में बने रहिए और धीरे-धीरे सांस छोड़िये।
अब यही पूरी प्रक्रिया दाएं पैर से भी कीजिए और 3 से 5 बार इस मुद्रा को दोहराइये।

भुजंगासन क्या है

भुजंगासन दो शब्दों भुजंग और आसन से मिलकर बना है. अंग्रेजी में इस आसन को कोबरा पोज़ कहते हैं. इस योग में सांप की तरह अपने धड़ को आगे की दिशा में उठाकर रखना होता है. अगर आपको पेट संबंधी कोई भी समस्या है, तो रोज़ाना भुजंगासन करें.

नौकासन योग करने का तरीका

नवासना योग करने के लिए आप एक योगा मैट को बिछा के अपने दोनों पैरों को अपने सामने सीधा कर के बैठ जाएं या दंडासन में बैठे।
अपनी रीढ़ की हड्डी को सीधा रखें और अपने दोनों हाथों को भी सीधा जमीन पर रखें।
अब अपने दोनों पैरों को सीधा रखें हुए ऊपर उठायें।
अगर आपको को उठाते समय संतुलन बनाने में कठिनाई होती हैं और आप संतुलन नहीं बना पा रखें हैं तो आप अपने दोनों पैरों को पास-पास रखें और घुटनों के यहाँ से मोड़ लें।
अपने दोनों हाथों से जांघों से पकड़े और पैरों को सहारा दें।
अब अपने दोनों पैरों को धीरे-धीरे ऊपर की ओर सीधे करते जाएं।

उड्डीयान बंध

जैसे-जैसे हमारी उम्र बढ़ने लगती है, वैसे-वैसे हमारी त्वचा ढीली होने लगती है और साथ ही हमारा पेट बढ़ने लगता है। हमारे शरीर की जिन नदियों में रक्त बहता है, वो भी कमजोर हो जाता है। ऐसी समस्या से हर किसी को गुजरना पड़ता है, लेकिन जब हम उड्डियान बंध को करते हैं, तो इससे हमारी बढ़ती हुई आयु पर असर होता है। इसको करने से व्यक्ति अपने आप को तरोताजा और युवा महसूस करता है। इस बंध के कारण हमारी आँख, कान, नाक और मुंह अर्थात हमारे सातों द्वार बंद हो जाते हैं। जिसके फलस्वरूप प्राण सुषुम्ना में प्रविष्ट होकर ऊपर की ओर उड़ान भरने लगते हैं। यही कारण है कि हम इसे उड्डीयान बंध कहते हैं, उड्डीयान बंध, बंध योग का ही

उष्ट्रासन

उष्ट्रासन की अंतिम अवस्था में पहुंचने के बाद हमारे शरीर की आकृति कुछ-कुछ ऊंट के समान प्रतीत होती है, इसी कारण इसे उष्ट्रासन कहते हैं। यह आसन वज्रासन में बैठकर किया जाता है। उष्ट्रासन शरीर के अलगे भाग को लचीला और मजबूत बनाता है। इस आसन से छाती फैलती है और फेफड़ों की कार्यक्षमता में बढ़ोतरी होती है। मेरुदंड एवं पीठ को मजबूत और सुदृड़ बनाने के लिए भी इस आसन का अभ्यास किया जाता है। गले संबंधी रोग में भी यह आसन लाभदायक है। उदर संबंधी रोग, जैसे कांस्टीपेशन, इनडाइजेशन, एसिडिटी रोग निवारण में इस आसन से सहायता मिलती है। गले संबंधी रोगों में भी यह आसन लाभदायक है।

“योग विज्ञान है” – ओशो

 योग विज्ञान है, विश्वास नहीं। योग की अनुभूति के लिए किसी तरह की श्रद्धा आवश्यक नहीं है। योग का इस्लाम, हिंदू, जैन या ईसाई से कोई संबंध नहीं है। 

जिन्हें हम धर्म कहते हैं वे विश्वासों के साथी हैं। योग विश्वासों का नहीं है, जीवन सत्य की दिशा में किए गए वैज्ञानिक प्रयोगों की सूत्रवत प्रणाली है। इसलिए पहली बात मैं आपसे कहना चाहूंगा वह यह कि  योग विज्ञान है, विश्वास नहीं। योग की अनुभूति के लिए किसी तरह की श्रद्धा आवश्यक नहीं है। योग के प्रयोग के लिए किसी तरह के अंधेपन की कोई जरूरत नहीं है।

नास्तिक भी योग के प्रयोग में उसी तरह प्रवेश पा सकता है जैसे आस्तिक। योग नास्तिक-आस्तिक की भी चिंता नहीं करता है। विज्ञान आपकी धारणाओं पर निर्भर नहीं होता; विपरीत, विज्ञान के कारण आपको अपनी धारणाएं परिवर्तित करनी पड़ती हैं। कोई विज्ञान आपसे किसी प्रकार के बिलीफ, किसी तरह की मान्यता की अपेक्षा नहीं करता है। विज्ञान सिर्फ प्रयोग की, एक्सपेरिमेंट की अपेक्षा करता है।