ਯੋਗ
योग से मिलती है तनाव मुक्ति
यौगिक दृष्टि से शरीर और मन के साथ साथ भावना एक दूसरे से इस प्रकार अविभक्त होती हैं कि वे कोशिश करने के बावजूद भी अलग नहीं की जा सकती हैं |मन केवल मष्तिष्क को सोचने का प्रेरक ही नहीं अपितु वह बुद्धिपुंज भी है जो शरीर के अंग प्रत्यंग और सूक्ष्मतम भागों को भी संचालित करता है |शरीर को प्रभावित करने वाली प्रत्येक वस्तु या प्रक्रिया का प्रभाव मन पर अवश्य पड़ता है और मन का शरीर पर |चूंकि मन सम्पूर्ण शरीर में अंतर्व्याप्त है और उसके प्रत्येक अणु में प्रविष्टि है ,इसलिए यौगिक क्रियाओं का जिन्हें हम योगासन कहते हैं ,मन और भावनाओं पर भी उतना ही प्रभाव डालती हैं |यह निर्विवाद रूप से सत्य है कि स्वाभा
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स्तन कैंसर के उपचार के बाद योग करना लाभदायक l
एक शोध में पता चला है कि स्तन कैंसर के इलाज के बाद यदि कम से कम तीन महीनों तक नियमित रूप से योगाभ्यास किया जाए , तो इससे थकान और सूजन काफी हद तक कम होती है। अमेरिका की ओहियो स्टेट यूनिवर्सिटी में मनोविज्ञान के प्रोफेसर और मनोरोग विशेषज्ञ जेनिस कीकॉल्ट-ग्लासेर ने कहा, "कुछ महीनों तक लगातार योगाभ्यास करने से स्तन कैंसर से उबरे मरीजों को काफी फायदा पहुंचता है।" उन्होंने कहा, "नियमित योगाभ्यास के सकारात्मक परिणाम उन लोगों के लिए भी फायदेमंद है जिनको थकान और सूजन की समस्या रहती है।" योगा करने से हमारे शरीर को कई प्रकार के लाभ मिलते हैं जिसका अनुमान शायद ही हम इस जिंदगी में लगा सकते हैं।
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पेट की चर्बी घटाए तोलांगुलासन
वजन तोलते वक्त दोनों तराजू संतुलन में रहते हैं अर्थात तराजू का कांटा बीचोंबीच रहता है उसी तरह इस योगासन में भी शरीर का संपूर्ण भार नितंब पर आ जाता है और व्यक्ति की आकृति ताराजू जैसी लगती है इसीलिए इसे तोलांगुलासन कहते हैं।
आसन विधि : सर्वप्रथम दण्डासन में बैठ जाएं। फिर शरीर के भार को नितंबों पर संतुलित करते हुए श्वास अन्दर लें। अब थोड़ा-सा पीछे झुकते हुए हाथ-पैरों को भूमि पर से धीरे-धीरे ऊपर उठा दें। कुछ देर रुकने के बाद पुन: दण्डासन में लौट आएं।
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खांसी और जुकाम बस दस मिनट..........गायब
मौसम के परिवर्तन के कारण संक्रमण से कई बार वाइरल इंफेक्शन के कारण हमारे गले व फेफड़ों में जमने वाली एक श्लेष्मा होती है जो खांसी या खांसने के साथ बाहर आता है। यह फायदेमंद और नुकसानदायक दोनों है। इसे ही कफ कहा जाता है। अगर आप भी खांसी या जुकाम से परेशान है तो बिना दवाई लिए भी रोज सिर्फ दस मिनट इस मुद्रा के अभ्यास से कफ छुटकारा पा सकते हैं।
मुद्रा- बाएं हाथ का अंगूठा सीधा खडा कर दाहिने हाथ से बाएं हाथ कि अंगुलियों में परस्पर फँसाते हुए दोनों पंजों को ऐसे जोडें कि दाहिना अंगूठा बाएं अंगूठे को बहार से कवर कर ले,इस प्रकार जो मुद्रा बनेगी उसे अंगुष्ठ मुद्रा कहेंगे।
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गुर्दे की समस्यायों लिए करें योग
आज के आधुनिक जीवनशैली के कारण लोगों को कई तरह की बीमारियाँ, जैसे- डाइबीटिज, हाई ब्लड-प्रेशर, हर्ट डिजीज आदि हो रहे हैं जिसके कारण किडनी के ऊपर बहुत बूरा प्रभाव पड़ रहा है। इसलिए किडनी की बीमारी आज तेजी से बढ़ रही हैं। इस रोग का पता पहले अवस्था में ही नहीं चलता है, इसलिए किडनी को स्वस्थ रखना बहुत ज़रूरी हो जाता है।गुर्दे( Kidney) को नुकसान में कई चरणो में वर्गीकृत किया जाता है। योग केवल प्रारंभिक चरण मे मददगार होना पाया जाता है।
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योगा करें गर्दन की चरबी हटायें
जैसे जैसे उम्र बढती है वैसे वैसे हमारा शरीर विकास की ओर भी आगे कूच करता है और अधोगति भी करता है । यह अधोगति का मतलब कुछ बीमारियाँ, रोग आदि। हमारी उम्र हमारे चेहरे से साफ दिखती है। हम उन सब पर तो संपूर्ण ध्यान रखते हैं। किन्तु हमारे शरीर के कुछ हिस्से ऐसे है जिसे हम नजरअंदाज करते है। हमारी पीठ, हमारी गर्दन आदि। हमारी गर्दन में लम्बे समय के बाद दर्द शुरु हो जाता है। कुछ लोगो को तो छोटी से उम्र में ही यह दर्द होता है।
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शोध: रोज करें ये आसान काम, दूर हो जाएगा गुस्सैलझगड़ालू स्वभाव और
आज के दौर में दुनियाभर के युवाओं में रोष, गुस्सा और जरूरत से ज्यादा आक्रामक व्यवहार देखने को मिल रहा है। वैज्ञानिकों का कहना है कि दिमाग को शांत रखने वाला योग, उन युवाओं की मदद कर सकता है जो पारिवारिक झगड़ों को बीच रह हैं या झगड़ालु व्यवहार दिखाते हैं या फिर नकारात्मक और खतरनाक रवैया अपनाए हुए हैं।
योग एक परिचय
योग भारतीय वैदिक परंपरा की अमूल्य देन है योग का प्रारंभिक ज्ञान वैदिक दर्शन से ही प्राप्त हुआ है ऋग्वेद में सर्वप्रथम योग संबंधी विचारधारा का उल्लेख मिलता है वेद भारतीय अध्यात्म दर्शन की के प्रेरणा स्रोत हैं वेदों में ही मानव मुक्ति हेतु योग दर्शन के ज्ञान का प्रादुर्भाव मिलता है
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योग से पाएं खतरनाक रोगों पर नियंत्रण
किसी कठिन और थका देने वाली दो-ढाई घंटे लंबी कसरत के बजाय बीस से तीस मिनट तक किया जाने वाला योगाभ्यास ज्यादा कारगर होता है। कसरत में फिर भी नुकसान की गुंजाइश रहती है क्योंकि पता नहीं शरीर में कौन सा रोग पल रहा है और की जा रही कसरत अपने दबाव से उस रोग को बढ़ा या बिगाड़ दे।
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मंदिर बनाने का नक्शा
|| प्राचीन भारत में मंदिर बनाने का नक्शा ||
|| कुण्डलिनी जाग्रत करने के स्थान थे प्राचीन मंदिर ||
प्राचीन भारत में मंदिर बनाने से पहले जगह और दिशा का विशेष महत्व होता था | मंदिरो का निर्माण अलग अलग शैलियों के हिसाब से हुआ करता था पर अधिकतर मंदिर ऐसी पद्धति से बनते थे जिसमे हर एक कुण्डलिनी चक्र के हिसाब से गर्भगृह, मंडप, प्रस्थान, परिक्रमा आदि का निर्माण होता था और जिस चक्र के हिसाब से उस जगह का निर्माण होता था वहा व्यक्ति को चलकर या बैठकर उस चक्र को जागृत करने में सहयोग मिलता था |
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