সুখাসন

সুখাসন : সুখ শব্দের সাধারণ অর্থগুলো হলো- হর্ষ, আনন্দ, প্রীতি, স্বাচ্ছন্দ্য, স্বস্তি, তৃপ্তি ইত্যাদি। স্বাচ্ছন্দ্য থাকা যায় এমন ভাবগত অর্থ থেকে এই আসনের নামকরণ করা হয়েছে সুখাসন (সুখ + আসন)।

सुप्त पादांगुष्ठासन

सुप्त पादांगुष्ठासन (Supta Padangusthasana), संस्कृत भाषा का शब्द है। ये चार शब्दों से मिलकर बना है। पहले शब्द सुप्त का अर्थ है लेटा हुआ या Reclined। दूसरा शब्द है पाद, इसका अर्थ है पैर यानी Legs या Feet। 

तीसरे शब्द अंगुष्ठ का अर्थ है अंगूठा या Big Toe। आसन, किसी विशेष स्थिति में खड़े होने, लेटने या बैठने को कहा जाता है। अंग्रेजी भाषा में इसे पोज या Pose कहा जाता है। 

सुप्त पादांगुष्ठासन को अंग्रेजी में Reclined Hand to Big Toe Pose भी कहा जाता है। इस योगासन की रचना का श्रेय महान योग गुरु आचार्य बीकेएस आयंगर (B. K. S. Iyengar) को जाता है। 

সুপ্তবদ্ধ-কোণাসন

সুপ্তবদ্ধ-কোণাসন : যোগশাস্ত্রে বর্ণিত আসন বিশেষ। কোণাসনের একটি প্রকরণ বিশেষ। শায়িত অবস্থায় কোণাসন তৈরি করা হয় বলে- এই  আসনের নামকরণ করা হয়েছে সুপ্তবদ্ধ কোণাসন।

সুপ্তবীরাসন

সুপ্তবীরাসন : যোগশাস্ত্রে বর্ণিত আসন বিশেষ। শুয়ে থাকা অবস্থায় বীরাসন করার ভঙ্গিমা হিসাবে এর নামকরণ করা হয়েছে সুপ্তবীরাসন (সুপ্ত-বীর +  আসন)। 

সুপ্তভদ্রাসন

সুপ্তভদ্রাসন : যোগশাস্ত্রে বর্ণিত আসন বিশেষ। শুয়ে থাকা অবস্থায় ভদ্রাসন করার ভঙ্গিমা হিসাবে এর নামকরণ করা হয়েছে সুপ্তভদ্রাসন (সুপ্ত-ভদ্র +  আসন)। মূলত এই  আসনের দেহ  ভঙ্গিমার সাথে ভদ্রাসনের তেমন মিল পাওয়া যায় না। 

সেতুবন্ধাসন

যোগশাস্ত্রে বর্ণিত এক প্রকার এক প্রকার আসন। দেহকে উপরে তুলে সেতুর ভঙ্গিমা দেওয়া হয় বলে, এর এরূপ নামকরণ করা হয়েছে। এর বর্ধিত প্রকরণটি পার্শ্ব-সেতুবন্ধাসন নামে পরিচিত।

“योग विज्ञान है” – ओशो

 योग विज्ञान है, विश्वास नहीं। योग की अनुभूति के लिए किसी तरह की श्रद्धा आवश्यक नहीं है। योग का इस्लाम, हिंदू, जैन या ईसाई से कोई संबंध नहीं है। 

जिन्हें हम धर्म कहते हैं वे विश्वासों के साथी हैं। योग विश्वासों का नहीं है, जीवन सत्य की दिशा में किए गए वैज्ञानिक प्रयोगों की सूत्रवत प्रणाली है। इसलिए पहली बात मैं आपसे कहना चाहूंगा वह यह कि  योग विज्ञान है, विश्वास नहीं। योग की अनुभूति के लिए किसी तरह की श्रद्धा आवश्यक नहीं है। योग के प्रयोग के लिए किसी तरह के अंधेपन की कोई जरूरत नहीं है।

नास्तिक भी योग के प्रयोग में उसी तरह प्रवेश पा सकता है जैसे आस्तिक। योग नास्तिक-आस्तिक की भी चिंता नहीं करता है। विज्ञान आपकी धारणाओं पर निर्भर नहीं होता; विपरीत, विज्ञान के कारण आपको अपनी धारणाएं परिवर्तित करनी पड़ती हैं। कोई विज्ञान आपसे किसी प्रकार के बिलीफ, किसी तरह की मान्यता की अपेक्षा नहीं करता है। विज्ञान सिर्फ प्रयोग की, एक्सपेरिमेंट की अपेक्षा करता है।