ਹਲਾਸਨ

ਇਸ ਆਸਣ ਵਿਚ, ਸਰੀਰ ਦੀ ਸ਼ਕਲ ਹਲ ਦੀ ਤਰ੍ਹਾਂ ਬਣ ਜਾਂਦੀ ਹੈ. ਇਸ ਤੋਂ ਇਸ ਨੂੰ ਹਲਸਾਨਾ ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ. ਹਲਸਾਨ ਸਾਡੇ ਸਰੀਰ ਨੂੰ ਲਚਕਦਾਰ ਬਣਾਉਣ ਲਈ ਮਹੱਤਵਪੂਰਣ ਹੈ. ਇਹ ਸਾਡੀ ਰੀੜ੍ਹ ਦੀ ਹਮੇਸ਼ਾਂ ਜਵਾਨ ਰਹਿੰਦੀ ਹੈ.

ਇਸ ਆਸਣ ਵਿਚ ਸ਼ਕਲ ਇਕ ਹਲ ਵਰਗੀ ਹੈ, ਇਸ ਲਈ ਇਸਨੂੰ ਹਲਸਾਨਾ ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ.

ਹਲਸਨਾ ਕਰਨ ਦਾ :ੰਗ:

घुटनों के लिए जानू नमन आसन

ढलती उम्र में व्यक्ति को जोड़ों से संबंधित रोग होने लगते हैं। अंग-अंग दुखता है। ज्यादा दूर चला नहीं जाता या बहुत ऊपर चढ़ा नहीं। व्यक्ति तभी तक जवान रहता है, जब तक उसके सभी अंग और जोड़ तनावरहित रहते हैं। जो लोग जानू नमन आसन करते रहते हैं उनको यह समस्या कभी नहीं सताती।

जानू घुटने को कहते हैं। क्रम से घुटनों को मोड़ने और सीधा करने को जानू नमन कहते हैं। जानू नमन आसन में अंग संचालन (सूक्ष्म व्यायाम) के अंतर्गत आता है।

गर्भाशय की समस्‍या को दूर करे पश्चिमोत्तानासन

पश्चिम अर्थात पीछे का भाग- पीठ। पीठ में खिंचाव उत्पन्न होता है, इसीलिए इसे पश्चिमोत्तनासन कहते हैं। इस आसन से शरीर की सभी माँसपेशियों पर खिंचाव पड़ता है। पशिच्मोत्तासन आसन को आवश्यक आसनों में से एक माना गया है। शीर्षासन के बाद इसी आसन का महत्वपूर्ण स्थान है। इस आसन से मेरूदंड लचीला बनता है, जिससे कुण्डलिनी जागरण में लाभ होता है। यह आसन आध्यात्मिक दृष्टि से अधिक महत्वपूर्ण है। पशिच्मोत्तासन के द्वारा मेरूदंड लचीला व मजबूत बनता है जिससे बुढ़ापे में भी व्यक्ति तनकर चलता है और उसकी रीढ़ की हड्डी झुकती नहीं है। यह मेरूदंड के सभी विकार जैसे- पीठदर्द, पेट के रोग, यकृत रोग, तिल्ली, आंतों के रोग तथा ग

छाछ या मट्ठा के औषधीय उपयोग

छ या मट्ठा से सभी परिचित हैं ।यह स्वादिष्ट एवं पाचक् होता है। अच्छी तरह जमाए दही मैं एक चौथाई जल मिलाकर मथानी से मथकर मक्खन प्रथक कर देने से छाछ या मट्ठा प्राप्त होता है । यह स्वयं तो शीघ्र पचता है अन्य
द्रव्यो को भी पचाने मैं समर्थ होता है इसी कारण इसका अनुपान
पथ्य् एवं औषधि तीनों रूप मैं होता है।
पेट दर्द की अवस्था मैं जब हाथ पैरों मैं सूजन कब्ज , सूखी खासी पेट मैं गुड़ गुड़ की आवाज आदि सहायक लक्षण हो तब छाछ मैं पीपल व सेन्धा नमक मिलाकर पीने से पेट दर्द ठीक होता है ।

कई समस्याओं का एक हल: कपालभाति

कपालभाति प्राणायाम नहीं बल्कि षट्कर्म का अभ्यास है। इसके लिए पालथी लगाकर सीधे बैठें, आंखें बंदकर हाथों को ज्ञान मुद्रा में रख लें। ध्यान को सांस पर लाकर सांस की गति को अनुभव करें और अब इस क्रिया को शुरू करें। इसके लिए पेट के निचले हिस्से को अंदर की ओर खींचे व नाक से सांस को बल के साथ बाहर फेंके। यह प्रक्रिया बार-बार इसी प्रकार तब तक करते जाएं जब तक थकान न लगे। फिर पूरी सांस बाहर निकाल दें और सांस को सामान्य करके आराम से बैठ जाएं।

ओशो —हर चक्र की अपनी नींद

सहस्‍त्रार को छोड़ कर प्रत्‍येक चक्र की अपनी नींद है। सातवें चक्र में बोध समग्र होता है। यह विशुद्ध जागरण की अवस्‍था है। इसीलिए कृष्‍ण गीता में कहते है कि योगी सोता नहीं।

ओशो – तीसरी आँख : स्‍वप्‍न या सत्‍य?

ध्‍यान के अंतर्यात्रा पर जो भी चल पड़ता है वह अक्‍सर, अध्‍यात्‍म-जगत के गुह्म विज्ञान से बेहद आकर्षित हो जाता है। इससे पहले कि उसके पैर पार्थिव शरीर की भूमि में दृढ़ता से जम जाएं, वह तीसरे-चौथे-पांचवें सूक्ष्‍म शरीरों की खोजबीन करने लगता है। सुदूर आकाश के ये रहस्‍यपूर्ण टिमटिमाते सितारे उसे बुलाने लगते है। इन सितारों में सर्वाधिक आकर्षक सितारा अगर कोई मालूम होता है तो वह है: ‘’तीसरी आँख का।‘’

ओशो — विज्ञान भैरव तंत्र

विज्ञान भैरव तंत्र का जगत बौद्धिक नहीं है। वह दार्शनिक भी नहीं है। तंत्र शब्‍द का अर्थ है। विधि, उपाय, मार्ग। इस लिए यह एक वैज्ञानिक ग्रंथ है। विज्ञान ‘’क्‍यों‘’ की नहीं, ‘’कैसे’’ की फिक्र करता है। दर्शन और विज्ञान में यही बुनियादी भेद है। दर्शन पूछता है। यह अस्‍तित्‍व क्‍यों है? विज्ञान पूछता है, यह आस्‍तित्‍व कैसे है? जब तुम कैसे का प्रश्‍न पूछते हो, तब उपाय, विधि, महत्‍वपूर्ण हो जाती है। तब सिद्धांत व्‍यर्थ हो जाती है। अनुभव केंद्र बन जाता है।

“योग विज्ञान है” – ओशो

 योग विज्ञान है, विश्वास नहीं। योग की अनुभूति के लिए किसी तरह की श्रद्धा आवश्यक नहीं है। योग का इस्लाम, हिंदू, जैन या ईसाई से कोई संबंध नहीं है। 

जिन्हें हम धर्म कहते हैं वे विश्वासों के साथी हैं। योग विश्वासों का नहीं है, जीवन सत्य की दिशा में किए गए वैज्ञानिक प्रयोगों की सूत्रवत प्रणाली है। इसलिए पहली बात मैं आपसे कहना चाहूंगा वह यह कि  योग विज्ञान है, विश्वास नहीं। योग की अनुभूति के लिए किसी तरह की श्रद्धा आवश्यक नहीं है। योग के प्रयोग के लिए किसी तरह के अंधेपन की कोई जरूरत नहीं है।

नास्तिक भी योग के प्रयोग में उसी तरह प्रवेश पा सकता है जैसे आस्तिक। योग नास्तिक-आस्तिक की भी चिंता नहीं करता है। विज्ञान आपकी धारणाओं पर निर्भर नहीं होता; विपरीत, विज्ञान के कारण आपको अपनी धारणाएं परिवर्तित करनी पड़ती हैं। कोई विज्ञान आपसे किसी प्रकार के बिलीफ, किसी तरह की मान्यता की अपेक्षा नहीं करता है। विज्ञान सिर्फ प्रयोग की, एक्सपेरिमेंट की अपेक्षा करता है।