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अपन मुद्रा करने की विधि

अपन वायु मुद्रा

प्राण स्थान मुख्य रूप से हृदय में आंनद केंद्र (अनाहत चक्र) में है। प्राण नाभि से लेकर कठं-पर्यन्त फैला हुआ है। प्राण का कार्य श्वास-प्रश्वास करना, खाया हुआ भोजन पकाना, भोजन के रस को अलग-अलग इकाइयों में विभक्त करना, भोजन से रस बनाना, रस से अन्य धातुओं का निर्माण करना है। अपान का स्थान स्वास्थय केन्द्र और शक्ति केन्द्र है, योग में जिन्हें स्वाधिष्ठान चक्र और मूलाधर चक्र कहा जाता है। अपान का कार्य मल, मूत्र, वीर्य, रज और गर्भ को बाहर निकालना है। सोना, बैठना, उठना, चलना आदि गतिमय स्थितियों में सहयोग करना है। जैसे अर्जन जीवन के लिए जरूरी है, वैसे ही विर्सजन भी जीवन के लिए अनिर्वाय है। शरीर में क