१०८ योग मुद्रा
योग मुद्रा क्या है
विधि- सर्वप्रथम पद्मासन में आइए । हाथों को पीछे ले जाइए। बायें हाथ से दायें हाथ की कलाई को पकड़ लीजिए ।पहले साँस लीजिए और साँस को निकालते हुए नीचे फर्श पर माथा लगाइए ,फिर साँस लेते हुए वापिस आइए।
4-5 बार साँस के साथ दोहरायें।
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चिन्मय मुद्रा
विधि-
सर्वप्रथम वज्रासन / पद्मासन या सुखासन में बैठ जाइए।
अब तर्जनी उंगली के अग्र भाग को अंगूठे के अग्र भाग से स्पर्श कीजिए व बाकी तीन उंगलियों को मुट्ठी बाँधने की स्थिति में मोड़ लीजिए ।
हाथों को घुटनो पर रखिए हथेलियों को आकाश की तरफ रखेंगे।
आँखे बंद रखते हुए श्वांस सामान्य बनाएँगे।
अपने मन को अपनी श्वांस गति पर केंद्रित रखिए।
लाभ-
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आदि मुद्रा
विधि-
सर्वप्रथम वज्रासन / पद्मासन या सुखासन में बैठ जाइए।
अब अंगूठे को अंदर की और रखते हुए बाकी चारों उंगलियों को अंदर की और मुट्ठी बाँधने की स्थिति में मोड़ लीजिए सभी उंगलियों के अग्र भाग को हथेली से स्पर्श करते हुए । हाथों को घुटनो / जांघों पर रखेंगे ।
आँखे बंद रखते हुए श्वांस सामान्य बनाएँगे।
अपने मन को अपनी श्वांस गति पर व मुद्रा पर केंद्रित रखिए।
लाभ-
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चिन और ज्ञान मुद्रा
चिन और ज्ञान मुद्रा -ज्ञान अर्थात बुद्धि-इस मुद्रा के प्रतिदिन अभ्यास से बुद्धि के स्तर पर वृद्धि होती है। ध्यान और प्राणायाम करते समय इस मुद्रा का नियमित अभ्यास करना चाहिए । अंगूठे एवं तर्जनी अंगुली के स्पर्श से जो मुद्रा बनती है उसे ज्ञान मुद्रा कहते हैं | तर्जनी अर्थात प्रथम उँगली को अँगूठे के नुकीले भाग से स्पर्श करायें। शेष तीनों उँगलियाँ सीधी रहें।हाथ की तर्जनी (अंगूठे के साथ वाली) अंगुली के अग्रभाग (सिरे) को अंगूठे के अग्रभाग के साथ मिलाकर रखने और हल्का-सा दबाव देने से ज्ञान मुद्रा बनती है| बाकी उंगलियां सहज रूप से सीधी रखें| इस मुद्रा का सम्पूर्ण स्नायुमण्डल और मस्तिष्क पर बड़ा ही हि
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