योग
चित्त की सभी वृत्तियों को रोकने का नाम योग है
योग अनेक प्रकार के होते हैं। राजयोग , कर्मयोग ,हठयोग , लययोग , सांख्ययोग , ब्रह्मयोग , ज्ञान योग ,भक्ति योग , ध्यान योग , क्रिया योग , विवेक योग ,विभूति योग व प्रकृति - पुरुष योग , मंत्र योग , पुरुषोत्तमयोग , मोक्ष योग , राजाधिराज योग आदि। मगरयाज्ञवल्क्य ने जीवात्मा और परमात्मा के मेल को ही योगकहा है। वास्तव में योग एक ही प्रकार का होता है , दो याअनेक प्रकार का नहीं
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योग मुद्रा क्या है
विधि- सर्वप्रथम पद्मासन में आइए । हाथों को पीछे ले जाइए। बायें हाथ से दायें हाथ की कलाई को पकड़ लीजिए ।पहले साँस लीजिए और साँस को निकालते हुए नीचे फर्श पर माथा लगाइए ,फिर साँस लेते हुए वापिस आइए।
4-5 बार साँस के साथ दोहरायें।
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श्वेत प्रदर(ल्यूकोरिया) में योग
ल्यूकोरिया (श्वेत प्रदर) की बीमारी महिलाओं की आम समस्या है। संकोच में इसे न बताना कई गंभीर समस्याओं का कारण बन सकता है। थोड़ी सी सावधानी व उपचार के जरिए इसके घातक परिणामों से बचा जा सकता है। अन्यथा यह कैंसर का कारण बन सकती है। सामान्य तौर पर गर्भाशय में सूजन अथवा गर्भाशय के मुख में छाले होने से यह समस्या पैदा होती है। उपचार न कराने से पीडि़ता को कई तरह की मानसिक व शारीरिक समस्याओं का शिकार होना पड़ता है। इसलिए महिलाएं को श्वेत प्रदर की बीमारी को हल्के में नहीं लेना चाहिए।
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ये 10 योगासन करने से दूर होती है थायरायड की बीमारी
थायरॉइड मानव शरीर का एक प्रमुख एंडोक्राइन ग्लैंड यानी अंत:स्रावी ग्रंथि है। यह गर्दन के निचले हिस्से में होती है। छोटी-सी यह ग्रंथि शरीर में हार्मोन का निर्माण करती है और मेटाबॉलिज्म को नियंत्रित रखती है। थायरॉइड ग्रंथि के सही तरीके से काम करने से आशय है कि शरीर का मेटाबॉलिज्म यानी भोजन को ऊर्जा में बदलने की प्रक्रिया भी सुचारू रूप से काम कर रही है। पर जैसे ही यह ग्रंथि घटनी और बढ़नी शुरू होती है तो मानव जीवन के लिए परेशानियां शुरू हो जाती हैं। इस ग्रंथि का असर हृदय, मांसपेशियों, हड्डियों और कोलेस्ट्रॉल के स्तर पर भी पड़ता है।
यौगिक ध्यान से लाभ
महर्षि पतंजलि के योगसूत्र में ध्यान भी एक सोपान है।
चित्त को एकाग्र करके किसी एक वस्तु पर केन्द्रित कर देना ध्यान कहलाता है। प्राचीन काल में ऋषि मुनि भगवान का ध्यान करते थे। ध्यान की अवस्था में ध्यान करने वाला अपने आसपास के वातावरण को तथा स्वयं को भी भूल जाता है। ध्यान करने से आत्मिक तथा मानसिक शक्तियों का विकास होता है। जिस वस्तु को चित मे बांधा जाता है उस मे इस प्रकार से लगा दें कि बाह्य प्रभाव होने पर भी वह वहाँ से अन्यत्र न हट सके, उसे ध्यान कहते है।
ध्यान से लाभ
ऐसा पाया गया है कि ध्यान से बहुत से मेडिकल एवं मनोवैज्ञानिक लाभ होते हैं।
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योग से समृद्ध होता जीवन
योग का ही परिणाम है पूरी सृष्टि। गणित के योग की तरह ही यह हमारे गुणों की अभिवृद्धि करता है। हमारे भीतर की चेतना को जगाकर हमें संस्कारवान और हृष्ट-पुष्ट बनाता है। योग के महत्व पर डॉ. प्रणव पण्ड्या का आलेख... बाहरी धन-संपदा से ज्यादा महत्वपूर्ण है भीतर कीसंपदा। अंतस के धनी बनकर ही हम सही मायने में
सफल कहलाएंगे...
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योग क्या है योगासनों के गुण एवं योगाभ्यास के लिए आवश्यक बातें
चित्तवृत्तियों का निरोध ही योग है।
(मृत्यु) दु:ख से छूटने और (अमृत) आनन्द प्राप्त करने का साधन (योग) ईश्वर उपासना करना है।
योग शब्दों के बारे में भाष्यकारों के अपने-अपने मत हैं। कुछ भाष्यकारों ने योग शब्द को ‘वियोग’, ‘उद्योग’ और ‘संयोग’ के अर्थों में लिया है, तो कुछ लोगों का कहना है कि योग आत्मा और प्रकृति के वियोग का नाम है। कुछ कहते हैं कि यह एक विशेष उद्योग अथवा यत्न का नाम है,
योगासन दिलाए पीरियड्स के दर्द में आराम
कई महिलाओं को मासिक धर्म के दौरान शरीर, खासतौर कमर में काफी दर्द होता है। इस दर्द को दूर करने के लिये आप योगासनों का सहारा ले सकती हैं। योग के पास हर बीमारी का इलाज है इसलिये इन्हें एक बार जरुर आजमाइये। नियमित तौर पर इन आसनों को करने से आपकी कमर और अन्य हिस्से मजबूत बनेंगे। आसन करने से शरीर के हर हिस्से स्ट्रेच होते हैं तथा खून का संचार अच्छी प्रकार से होने लगता है, जिससे शरीर की थकान, पेट की सूजन, गैस और दर्द आदि दूर होते हैं। आइये जानते हैं कि कौन-कौन से हैं वे योगासन जिन्हें करने से मासिकधर्म का दर्द दूर हो सकता है।
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योग के आसन दूर कर सकते हैं डिप्रेशन
अक्सर किसी को खोने या जीवन में छोटी-बड़ी घटनाएं घटने से हम डिप्रेशन के शिकार हो जाते हैं। कई बार हम लंबे समय तक इसे नजरंदाज करते रहते हैं। इस तरह ना तो हम प्रफेशनली अपना बेस्ट दे पाते हैं और न ही निजी जिंदगी में खुश रह पाते हैं। ऐसा माना गया है कि डिप्रेशन का इलाज योग में भी है। आइए जानें कि किस तरह दिनचर्या से कुछ वक्त निकालकर योग के जरिए हम डिप्रेशन को खत्म करने की दिशा में आगे बढ़ सकते हैं-
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कर्मण्येवाधिकारस्ते मां फलेषु कदाचन’ अर्थात कर्म योग
श्रीमद्भगवद्गीता में योग शब्द का प्रयोग व्यापक रूप में हुआ है | गीता के प्रत्येक अध्याय के नाम के साथ योग शब्द लगाया गया है जैसे ‘अर्जुन विषाद योग, सांख्य योग, कर्म योग, ज्ञान कर्म सन्यास योग आदि। एक विद्वान् के अनुसार गीता में इस शब्द उपयोग एक उद्देश्य़ से किया गया है। उन का कहना है कि जिस काल में गीता कही गयी थी, उस समय कर्म का अर्थ प्रायः यज्ञादि जैसे अनुष्ठानों के सन्दर्भ में किया जाता था। इसलिए गीता में कर्म के साथ योग शब्द जोड़ कर इसे अनुष्ठानों से अलग कर दिया। इस योग में कर्म को ईश्वर प्राप्ति का एक साधन बताया गया है। गीता में कर्म योग को सर्वश्रेष्ठ माना गया है। इस के अनुसार कर्म के