माध्यम के प्रति व्यक्ति— भाव भी बाधा
शून्य व्यक्ति के सामने अहंकार की बेचैनी:
भक्त और भगवान के द्वैत में अहंकार की सुरक्षा
भक्त, हठयोगी और राजयोगी की यात्रा
चौथे शरीर की वैज्ञानिक संभावनाएं
अतींद्रिय अनुभवों की अभिव्यक्ति में कठिनाई
हिंदुओं के अवतार जैविक—विकास कम के प्रतीकात्मक रूप
पृथ्वी की आयु की पुराणों में घोषणा
महाभारत युद्ध तक विकसित श्रेष्ठ विज्ञान नष्ट हो गया
पिरामिडों के निर्माण में मनस शक्ति का उपयोग
“योग विज्ञान है” – ओशो
योग विज्ञान है, विश्वास नहीं। योग की अनुभूति के लिए किसी तरह की श्रद्धा आवश्यक नहीं है। योग का इस्लाम, हिंदू, जैन या ईसाई से कोई संबंध नहीं है।
जिन्हें हम धर्म कहते हैं वे विश्वासों के साथी हैं। योग विश्वासों का नहीं है, जीवन सत्य की दिशा में किए गए वैज्ञानिक प्रयोगों की सूत्रवत प्रणाली है। इसलिए पहली बात मैं आपसे कहना चाहूंगा वह यह कि योग विज्ञान है, विश्वास नहीं। योग की अनुभूति के लिए किसी तरह की श्रद्धा आवश्यक नहीं है। योग के प्रयोग के लिए किसी तरह के अंधेपन की कोई जरूरत नहीं है।
नास्तिक भी योग के प्रयोग में उसी तरह प्रवेश पा सकता है जैसे आस्तिक। योग नास्तिक-आस्तिक की भी चिंता नहीं करता है। विज्ञान आपकी धारणाओं पर निर्भर नहीं होता; विपरीत, विज्ञान के कारण आपको अपनी धारणाएं परिवर्तित करनी पड़ती हैं। कोई विज्ञान आपसे किसी प्रकार के बिलीफ, किसी तरह की मान्यता की अपेक्षा नहीं करता है। विज्ञान सिर्फ प्रयोग की, एक्सपेरिमेंट की अपेक्षा करता है।