लिंग मुद्रा करते समय बरतें सावधानियां

इस मुद्रा का अभ्यास आप चाहे किसी भी समय करें लेकिन यह ध्यान रखें कि अधिक देर तक अभ्यास करने से अत्यधिक ऊष्मा उत्पन्न होती है।

पित्त दोष से ग्रसित लोगों को लिंग मुद्रा का अभ्यास नहीं करना चाहिए।
उच्च रक्तचाप से से पीड़ित लोगों को यह मुद्रा नहीं करनी चाहिए।
अगर किसी व्यक्ति के पेट में ट्यूमर हो तो उसे लिंग मुद्रा नहीं करनी चाहिए।
लिंग मुद्रा का अभ्यास करते समय हमेशा बायां अंगूठा ऊपर उठाना चाहिए।
 

विषाक्त पदार्थों को दूर करने के लिए लिंग मुद्रा के फायदे

एक अध्ययन में पाया गया है कि नियमित रुप से लिंग मुद्रा का अभ्यास करने से शरीर में जमा विषाक्त पदार्थ बाहर निकल जाते हैं और व्यक्ति के शरीर पर अतिरिक्त चर्बी नहीं जमा होती है। इसके अलावा यह मुद्रा शरीर को टोन करने का भी कार्य करती है और शरीर को शुद्ध रखती है।

शरीर की ऊर्जा बढ़ाने के लिए लिंग मुद्रा के फायदे

जब शरीर और मन काम करते हुए थक जाता है और व्यक्ति को आत्मविश्वास में कमी महसूस होने लगती है, ऐसे समय में लिंग मुद्रा का अभ्यास करने से शरीर को तुरंत एनर्जी मिलती है और खोया हुआ आत्मविश्वास वापस लौट आता है। यह मुद्रा शरीर एवं आत्मा दोनों को ऊर्जा प्रदान करने के साथ ही शुद्ध करने का भी कार्य करती है।

लिंग मुद्रा के फायदे ब्लड प्रेशर में

उम्र बढ़ने के साथ ही रक्तचाप की समस्या से भी व्यक्ति ग्रसित होने लगता है। ऐसी स्थिति में लिंग मुद्रा का नियमित रुप से अभ्यास करना बेहद फायदेमंद होता है। यह मुद्रा करने से रक्तचाप नियंत्रित रहता है और हृदय से जुड़ी बीमारियों का खतरा नहीं रहता है और व्यक्ति की सेहत अच्छी होती है।

लिंग मुद्रा के फायदे वजन घटाने के लिए

बढ़ते वजन को नियंत्रित करने के लिए भी यह मुद्रा काफी फायदेमंद है। हालांकि वजन घटाने के लिए लिंग मुद्रा को दिन में तीन बार 15 मिनट तक करने की आवश्यकता पड़ती है। इसके अलावा वजन घटाने के लिए लिंग मुद्रा की शुरूआत करने पर कम से कम दिन में आठ गिलास पानी पीना चाहिए और ठंडा भोजन जैसे दही, चावल, केला और खट्टे फलों का सेवन करना चाहिए। इसके नियमित अभ्यास से अतिरिक्त कैलोरी बर्न होती हैं। यह शरीर की अतिरिक्त कैलौरी को घटाने का कार्य करती है और मोटापे की समस्या से मुक्ति दिलाती है।

लिंग मुद्रा के फायदे सर्दी से निपटने के लिए

इस मुद्रा का उपयोग आम सर्दी से निपटने के लिए कर सकते हैं। यह मुद्रा शरीर में गर्मी पैदा करती है और सर्दियों में भी पसीना पैदा कर सकती है। यह सर्दी, अस्थमा, खांसी, साइनस और सूखे कफ को नियंत्रित करने में मदद करती है। यह मुद्रा आपके गले में कफ को ढीला कर इससे राहत दे सकती है। यदि आपको पुरानी खांसी या सर्दी है, तो यह मुद्रा आपकी मदद कर सकती है। इसको करने से सर्दी से होने वाले बुखार से राहत मिलती है।

लिंग मुद्रा के फायदे अस्थमा के इलाज में

सेहत के लिए लिंग मुद्रा बहुत फायदेमंद मानी जाती है। यह मौसम में बदलाव से उत्पन्न बीमारियों एवं कंपकंती को दूर करने में उपयोगी साबित होती है। इसके अलावा यह सांस से संबंधित रोगों एवं अस्थमा के अटैक को ठीक करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। लिंग मुद्रा का अभ्यास करने से गले में कफ जमा नहीं होता और खांसी की समस्या से भी छुटकारा मिलता है। पुरुषों में यौन शिथिलता को दूर करने में भी यह मुद्रा काफी लाभदायक है।

लिंग मुद्रा के फायदे

अन्य योग क्रियाओं एवं मुद्राओं की तरह लिंग मुद्रा भी सेहत के लिए बेहद फायदेमंद है। विशेषरुप से यह श्वसन से जुड़े विकारों को दूर करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। कफ, बलगम एवं गले की खराश दूर करने सहित लिंग मुद्रा के अनेकों फायदे हैं। आइये जानते हैं कुछ मुख्य फायदे के बारे में।

लिंग मुद्रा कितनी देर करनी चाहिए

लिंग मुद्रा का अभ्यास कभी भी किया जा सकता है। लेकिन इसे अधिक देर तक नहीं करना चाहिए क्योंकि यह शरीर में गर्म ऊर्जा (heat energy) को उत्पन्न करती है। सर्दी के मौसम में भी लिंग मुद्रा का अभ्यास करने से व्यक्ति को पसीना होता है। आवश्यकता के अनुसार लिंग मुद्रा का अभ्यास दिन में पंद्रह मिनट तक तीन बार करना चाहिए। कई विशेषज्ञों का मानना है कि लिंग मुद्रा को नियमित रुप से नहीं बल्कि आवश्यकता पड़ने पर करना चाहिए। जैसे कि अगर किसी व्यक्ति को बहुत  ठंडा लगती है, कंपकंपी होती है या फिर सर्दी खांसी और कफ की समस्या है तो इस स्थिति में लिंग मुद्रा का अभ्यास किया जा सकता है।

लिंग मुद्रा करने का तरीका

लिंग मुद्रा का अभ्यास शुरू करने से पहले यह ध्यान रखना चाहिए कि इस मुद्रा के बारे में आपको सही जानकारी होनी चाहिए। जिससे आप सटीक तरीके से लिंग मुद्रा का अभ्यास कर सकें।

“योग विज्ञान है” – ओशो

 योग विज्ञान है, विश्वास नहीं। योग की अनुभूति के लिए किसी तरह की श्रद्धा आवश्यक नहीं है। योग का इस्लाम, हिंदू, जैन या ईसाई से कोई संबंध नहीं है। 

जिन्हें हम धर्म कहते हैं वे विश्वासों के साथी हैं। योग विश्वासों का नहीं है, जीवन सत्य की दिशा में किए गए वैज्ञानिक प्रयोगों की सूत्रवत प्रणाली है। इसलिए पहली बात मैं आपसे कहना चाहूंगा वह यह कि  योग विज्ञान है, विश्वास नहीं। योग की अनुभूति के लिए किसी तरह की श्रद्धा आवश्यक नहीं है। योग के प्रयोग के लिए किसी तरह के अंधेपन की कोई जरूरत नहीं है।

नास्तिक भी योग के प्रयोग में उसी तरह प्रवेश पा सकता है जैसे आस्तिक। योग नास्तिक-आस्तिक की भी चिंता नहीं करता है। विज्ञान आपकी धारणाओं पर निर्भर नहीं होता; विपरीत, विज्ञान के कारण आपको अपनी धारणाएं परिवर्तित करनी पड़ती हैं। कोई विज्ञान आपसे किसी प्रकार के बिलीफ, किसी तरह की मान्यता की अपेक्षा नहीं करता है। विज्ञान सिर्फ प्रयोग की, एक्सपेरिमेंट की अपेक्षा करता है।