लिंग मुद्रा क्या है

लिंग मुद्रा एक ऐसी मुद्रा है जिसमें हथेली को इंटरलॉक करके शरीर के भीतर विभिन्न तत्वों पर ध्यान केंद्रित करने और उनके प्रवाह को बनाए रखने में सक्षम होती है। हाथ का अंगूठा मनुष्य के शरीर में अग्नि तत्व का प्रतीक होता है। लिंग मुद्रा अग्नि तत्व को मजबूत बनाने का कार्य करती है। आमतौर पर लिंग मुद्रा को ऊष्मा (Heat ) और ऊर्जा (Energy) की मुद्रा कहा जाता है। लिंग संस्कृत का शब्द है जिसका अर्थ पुरुष के जननांग से है। लिंग मुद्रा शरीर की ऊष्मा ऊर्जा को बढ़ाने में मदद करती है।

लिंग मुद्रा करने का तरीका और फायदे

लिंग मुद्रा, शरीर के भीतर गर्मी को केंद्रित करने काम करती है। इसे लिंग मुद्रा इसलिए कहा जाता है क्योंकि यह शरीर के अंदर के अग्नि के तत्व पर ध्यान केंद्रित करके शरीर की गर्मी को बढ़ाती है। आमतौर पर हिंदू धर्म में लिंग को भगवान शिव का प्रतीक माना जाता है। लेकिन यह एक योग मुद्रा है जिसमें अंगूठे से लिंग के समान आकृति बनती है। लिंग मुद्रा को आध्यात्म से भी जोड़कर देखा जाता है। प्राचीन काल में ऋषि मुनि इस मुद्रा का अभ्यास करते थे, लेकिन लिंग मुद्रा का महत्व आज भी उतना ही है। यह शरीर के अग्नि तत्व को संतुलित रखने का कार्य करती है इसलिए निरोगी रहने के लिए प्रत्येक व्यक्ति को लिंग मुद्रा का अभ्यास

बंद एवं मुद्राएं

 एवं मुद्राएं एवं मुद्राओं के अभ्यास के अभ्यास का प्रावधान हठयोग के ग्रंथों में मिलता है बंद योगाभ्यास का छोटा किंतु महत्व पूर्ण वर्ग है बंद का शाब्दिक अर्थ बांधना या नियंत्रित करना है बंद शरीर में प्राण वायु या विशेष की क्रियाओं को नियंत्रित करने का कार्य करते हैं जिससे उनकी कार्य क्षमता को पूर्ण आराम देकर बढ़ाया जा सके समानता बंदूक का प्रयोग श्वास रोकने के लिए सुरक्षा तरल के रूप में किया जाता है

योनि मुद्रा करने का तरीका एवं फायदे

योनि मुद्रा पुराने समय में लोगों के जीवन का एक हिस्सा एवं दिनचर्या में शामिल थी। भारत में प्राचीन काल से ही योग और मुद्राओं का अभ्यास किया जा रहा है। मान्यताओं के अनुसार योनि मुद्रा को उस समय का स्वर्णिम काल माना जाता था। यही कारण है कि उन दिनों स्वास्थ्य प्रणाली इतनी मजबूत थी। उन दिनों जानलेवा बीमारियां जैसे कैंसर एवं एड्स नहीं था और ना ही लोग इतनी मात्रा में दवाओं का सेवन करते थे। योनि मुद्रा का अभ्यास करके लोग अपने अंदर के चक्र की कल्पना करते थे और आंतरिक आवाज को सुनते थे। इस मुद्रा का अभ्यास करने वाले लोग मानते हैं कि दांये हाथ का अधिक इस्तेमाल करने वाले लोगों को दाहिने कान से आंतरिक आव

योनि मुद्रा करने का तरीका

सबसे पहले जमीन पर चटाई बिछाएं और पदमासन या फिर किसी अन्य ध्यान मुद्रा में बैठ जाएं।
अपनी पीठ की मांसपेशियों को एकदम सीधे रखें और पेट एवं पीठ को किसी भी तरह से लचीला ना करें।
मन को शांत रखें और दोनों आंखों को बंद कर लें।
इसके बाद अपने दोनों अंगूठे को दोनों कान पर रखें और तर्जनी उंगली को आंख की पलकों पर टिकाएं।
मध्यमा उंगली को नासिका के ऊपर रखें।
रिंग फिंगर को होठों के ऊपर और छोटी ऊंगली को होठों के नीचे रखें।
इसके बाद यह सुनिश्चित करें कि आपकी कोहनी आपके कंधे के एकदम बराबर एवं सीधी रेखा में हो।

योनि मुद्रा के फायदे

माना जाता है कि योनि मुद्रा एक ऐसी मुद्रा है जिसमें शांत मन से सांस छोड़ने लेने और सांस पर केंद्रित होने की क्रिया की जाती है। इस कारण से यह शरीर को आंतरिक शांति प्रदान करने में फायदेमंद है। इसके अलावा भी योनि मुद्र करने के अन्य कई फायदे हैं। आइये जानते हैं इन फायदों के बारे में।

डिप्रेशन के लिए योनि मुद्रा के फायदे

यह मुद्रा हर उम्र के लोगों के लिए बेहद फायदेमंद है। नियमित रुप से योनि मुद्रा का अभ्यास करने से मस्तिष्क में अच्छे रसायन का स्राव होता है। इसके अलावा शरीर से भी विषाक्त पदार्थ बाहर निकलते हैं जिसके कारण मन हल्का लगता है। योनि मुद्रा का अभ्यास करने से कॉर्टिसोल नामक स्ट्रेस हार्मोन का स्तर घटता है जिसके कारण तनाव, चिंता, डिप्रेशन, नींद न आने की समस्या, नकारात्मक विचार, चिड़चिड़ापन आदि समस्याएं दूर हो जाती हैं। यही कारण है कि आज के समय के अनुसार योनि मुद्रा बहुत फायदेमंद साबित हो सकती है।

तंत्रिका तंत्र के लिए योनि मुद्रा के फायदे

वास्तव में योनि मुद्रा एक ऐसा आसन है जिसमें आंखों को बंद रखकर श्वास लेने और छोड़ने की क्रिया की जाती है। इसकी वजह से व्यक्ति का तंत्रिता तंत्र मजबूत होता है और शरीर के अंदर जमा अनावश्यक पदार्थ बाहर निकलते हैं। यह आसान करने के बाद मांसपेशियों में जकड़न महसूस नहीं होती है और एक आध्यात्मिक शांति का अनुभव होता है एवं मन प्रसन्न रहता है।

योनि मुद्रा करने के फायदे ऊर्जा के लिए

माना जाता है कि योनि मुद्रा करने से शरीर का कायाकल्प होता है और व्यक्ति के अंदर एक नयी तरह की ऊर्जा का संचार होता है। इस मुद्रा में श्वास लेने और छोड़ने की प्रक्रिया बेहद अहम होती है और इसी क्रिया से व्यक्ति को फायदे भी होते हैं। यह मुद्रा उन लोगों के लिए बेहद उपयोगी है जो लोग एक्टिव नहीं होते हैं, सुस्ती का अनुभव करते हैं या फिर जल्दी थक जाते हैं। ऐसी स्थिति में योनि मुद्रा का अभ्यास करने से शरीर ऊर्जा से भर जाता है।

प्रजनन के लिए योनी मुद्रा के फायदे

कई बीमारियों के उपचार का समर्थन करने और शरीर, मन और आत्मा में सद्भाव लाने के लिए उनका उपयोग हजारों वर्षों से किया जाता रहा है। योनी मुद्रा- यह हाथ की यह स्थिति महिलाओं को एक सहज महिला ऊर्जा के संपर्क में लाने में मदद करती है। यह भी गर्भ और रचनात्मक शक्ति को प्रोत्साहित करने के लिए जानी जाती है। हाथ की स्थिति वास्तव में योनी की तरह दिखती है। हाथों को एक साथ लाते हुए, बाकी उंगलियों का जुड़ाव करते हुए अंगूठे और पॉइंटर उंगलियों के टिप्स एक दूसरे को छूते हैं।

“योग विज्ञान है” – ओशो

 योग विज्ञान है, विश्वास नहीं। योग की अनुभूति के लिए किसी तरह की श्रद्धा आवश्यक नहीं है। योग का इस्लाम, हिंदू, जैन या ईसाई से कोई संबंध नहीं है। 

जिन्हें हम धर्म कहते हैं वे विश्वासों के साथी हैं। योग विश्वासों का नहीं है, जीवन सत्य की दिशा में किए गए वैज्ञानिक प्रयोगों की सूत्रवत प्रणाली है। इसलिए पहली बात मैं आपसे कहना चाहूंगा वह यह कि  योग विज्ञान है, विश्वास नहीं। योग की अनुभूति के लिए किसी तरह की श्रद्धा आवश्यक नहीं है। योग के प्रयोग के लिए किसी तरह के अंधेपन की कोई जरूरत नहीं है।

नास्तिक भी योग के प्रयोग में उसी तरह प्रवेश पा सकता है जैसे आस्तिक। योग नास्तिक-आस्तिक की भी चिंता नहीं करता है। विज्ञान आपकी धारणाओं पर निर्भर नहीं होता; विपरीत, विज्ञान के कारण आपको अपनी धारणाएं परिवर्तित करनी पड़ती हैं। कोई विज्ञान आपसे किसी प्रकार के बिलीफ, किसी तरह की मान्यता की अपेक्षा नहीं करता है। विज्ञान सिर्फ प्रयोग की, एक्सपेरिमेंट की अपेक्षा करता है।