हनुमानासन के फायदे, करने का तरीका और सावधानियां

जानिए हनुमानासन करने के फायदे, हनुमानासन करने का तरीका, और सावधानियों के बारे में। हनुमानासन संस्कृत का एक शब्द है जहां हनुमान का अर्थ बंदर (monkey) और आसन का अर्थ मुद्रा (Pose) है। अंग्रेजी में इस आसन को मंकी पोज (Monkey pose) कहा जाता है। हनुमानासन का नाम हिंदू देवता हनुमान के नाम पर रखा गया है जिन्हें बंदर (monkey) का अवतार माना जाता है। यह एक इंटरमीडिएट स्तर का योग मुद्रा है जिसमें बजरंगबली की मुद्रा में शरीर को मोड़ते हैं। इस आसन की प्रारंभिक मुद्रा थोड़ी चुनौतीपूर्ण होती है क्योंकि इसमें शरीर को लचीला भी करना होता है। यह आसन जमीन पर आराम से बैठकर किया जाता है और लगातार सांस लेने और छो

निम्न सावधानियां शीर्षासन करते समय बरतें

यदि आपको उच्च रक्तचाप, हृदय रोग, सेरेब्रल या कोरोनरी थ्रॉम्बोसिस एवं ग्लूकोमा (glaucoma) की समस्या है तो शीर्षासन का अभ्यास न करें।
सिर में ब्लड हेमरेज की समस्या, किडनी का रोग और स्लिप डिस्क की समस्या हो तो इस आसन का अभ्यास (practice) करने से बचें।
यदि आपका पेट पूरी तरह से भरा (full stomach) हो, शरीर में थकान हो, सिर दर्द या माइग्रेन की समस्या हो  तो इस आसन का अभ्यास न करें।
शीर्षासन  का अंतिम मुद्रा में शरीर को उर्ध्वाधर रखें और पीछे या आगे की ओर न झुकाएं अन्यथा शरीर का बैलेंस बिगड़ सकता है और आपको चोट भी लग सकती है।

शीर्षासन कितनी देर तक करें

शीर्षासन के अभ्यास की अवधि हर व्यक्ति के लिए अलग-अलग होती है। शुरूआत में करीब 30 सेकेंड तक शीर्षासन का अभ्यास करना चाहिए। लेकिन सामान्य रूप से 1 मिनट से 5 मिनट तक शीर्षासन का अभ्यास किया जा सकता है। अगर कोई व्यक्ति कई वर्षों से लगातार शीर्षासन का अभ्यास कर रहा हो तो वह 30 मिनट तक शीर्षासन का अभ्यास कर सकता है। शुरूआत में जो लोग 30 सेकेंड इस आसन का अभ्यास करते हैं वे कुछ दिनों बाद इस आसन के अभ्यास की अवधि (duration) बढ़ाकर 5 मिनट कर सकते हैं।

सिर दर्द दूर करने में शीर्षासन के फायदे

प्रतिदिन सुबह शांत वातावरण में शीर्षासन का अभ्यास करने से दिमाग शांत रहता है और चिंता, तनाव, सिरदर्द, डिप्रेशन एवं माइग्रेन की समस्या दूर हो जाती है। यह आसन यादाश्त बढ़ाने में भी मदद करता है। यदि आप नींद न आने की समस्या (Insomnia) से पीड़ित हैं तो शीर्षासन करने से यह समस्या पूरी तरह दूर हो जाती है।

शीर्षासन करने के फायदे लिवर को मजबूत बनाने में

यदि आपका लिवर कमजोर है तो आपको प्रतिदिन सुबह शीर्षासन का अभ्यास करना चाहिए क्योंकि यह आसन लिवर को मजबूत बनाने के साथ ही लिवर से जुड़ी बीमारियों एवं ब्लड सर्कुलेशन की समस्या को भी दूर करने में मदद करता है।

शीर्षासन के फायदे पाचन सुधारने में

प्रतिदिन सही तरीके से शीर्षासन का अभ्यास करने से पेट की गैस बाहर निकलता है और पाचन अंगों में खून का प्रवाह बेहतर होता है। इससे पाचन तंत्र पोषक पदार्थों का अवशोषण बेहतर तरीके से करता है। कब्ज की समस्या को दूर करने में यह आसन बहुत फायदेमंद होता है।

कंधों एवं भुजाओं को मजबूत बनाने में शीर्षासन करने के फायदे

जब सिर के बल खड़े होकर आप शीर्षासन का अभ्यास करते हैं तो इससे भुजाएं और कंधों में मजबूती  आती है। इसके अलावा सिर, गर्दन एवं पीठ की मांसपेशियां भी मजबूत होती है। यह आसन सिर के ऊपरी हिस्से को टोन करने और मजबूत बनाने में मदद करता है।

शीर्षासन के लाभ सिर में खून का प्रवाह बढ़ाने में

शीर्षासन एक ऐसा योग मुद्रा है जिसका प्रतिदिन अभ्यास करने से सिर में सही तरीके से खून का प्रवाह होता है। यह आसन सिर की त्वचा में अतिरिक्त पोषण और ऑक्सीजन पहुंचाने का कार्य करता है और हेयर फॉलिकल को भी पोषण प्रदान करता है जिससे सिर दर्द दूर होता है बाल झड़ने की समस्या खत्म हो जाती है।

आंखों के लिए फायदेमंद शीर्षासन

जब आप सिर के बल उल्टा होकर शरीर का संतुलन बनाते हैं तो सिर में अतिरिक्त ऑक्सीजन, पोषक पदार्थ युक्त खून पहुंचता है जो कि आंखों की कोशिकाओं को भी मजबूत बनाने में मदद करता है। इसलिए आंखों की विभिन्न बीमारियों से छुटकारा पाने के लिए शीर्षासन फायदेमंद माना जाता है।

“योग विज्ञान है” – ओशो

 योग विज्ञान है, विश्वास नहीं। योग की अनुभूति के लिए किसी तरह की श्रद्धा आवश्यक नहीं है। योग का इस्लाम, हिंदू, जैन या ईसाई से कोई संबंध नहीं है। 

जिन्हें हम धर्म कहते हैं वे विश्वासों के साथी हैं। योग विश्वासों का नहीं है, जीवन सत्य की दिशा में किए गए वैज्ञानिक प्रयोगों की सूत्रवत प्रणाली है। इसलिए पहली बात मैं आपसे कहना चाहूंगा वह यह कि  योग विज्ञान है, विश्वास नहीं। योग की अनुभूति के लिए किसी तरह की श्रद्धा आवश्यक नहीं है। योग के प्रयोग के लिए किसी तरह के अंधेपन की कोई जरूरत नहीं है।

नास्तिक भी योग के प्रयोग में उसी तरह प्रवेश पा सकता है जैसे आस्तिक। योग नास्तिक-आस्तिक की भी चिंता नहीं करता है। विज्ञान आपकी धारणाओं पर निर्भर नहीं होता; विपरीत, विज्ञान के कारण आपको अपनी धारणाएं परिवर्तित करनी पड़ती हैं। कोई विज्ञान आपसे किसी प्रकार के बिलीफ, किसी तरह की मान्यता की अपेक्षा नहीं करता है। विज्ञान सिर्फ प्रयोग की, एक्सपेरिमेंट की अपेक्षा करता है।