फिर से जिम जाने के टिप्स, कम वजन उठाएं

लंबे ब्रेक के बाद दोबारा जिम के पहले दिन कभी भी भारी वेट उठाने या हैवी एक्सरसाइज करने से बचें। इससे आपको शारीरिक कष्ट हो सकता है और चोट भी लग सकती है। इसलिए जिम के पहले दिन हमेशा हल्की एक्सरसाइज ही करें जैसे कार्डियो या ट्रेडमिल चलाना।

लंबे अंतराल के बाद व्यायाम के टिप्स धीरे-धीरे एक्सरसाइज करें

लंबे ब्रेक के बाद दोबारा जिम जाने पर आपको धीरे-धीरे एक्सरसाइज करना चाहिए। यदि आप दूसरों को हेवी वजन उठाते देख कर खुद भी अधिक वजन उठाने का सोच रहे हो है तो ऐसा नहीं करना चाहिए। आपको सबसे पहले लाइट वेट एक्सरसाइज से शुरूआत करना चाहिए। इसके लिए आप निम्न एक्सरसाइज को कर सकते है।

क्रंचेज (Crunches)
डंबेल-फ्लाइज (Dumbbell Flyes)
साइड फ्लाइज़ (Side Flyes)
वर्कआउट में अधिक गैप होने पर आप शुरूआत में चेस्ट प्रेस (Chest Press), डंबेल प्रेस (Dumbbell Press), लेग प्रेस (Leg Press) आदि एक्सरसाइज को करने से बचें।

लंबे ब्रेक के बाद दोबारा जिम जाने की टिप्स

जिम को छोड़े अधिक समय हो जाने पर आप फिर से एक्सरसाइज करने के लिए कुछ बातों को ध्यान में रखना बहुत जरूरी होता है जैसे –

अब आप एक बिगनर्स है।
आप अब पहले जितने पावरफुल नहीं हैं।
आपका स्टैमिना और एंड्यूरेंस पहले की तुलना में कम हो गया।
पहले की अपेक्षा सरल एक्सरसाइज से शुरूआत करे।
इन बातों को ध्यान में रख कर फिर जिम में वर्कआउट करना शुरू करें। एक्सरसाइज करने के लिए निम्न टिप्स को फॉलो करें।

लंबे ब्रेक के बाद एक्सरसाइज करने की टिप्स

अगर आपके वर्कआउट रूटीन में लंबे समय का गैप हो गया है और आप लंबे ब्रेक के बाद दोबारा जिम जाना है। यहाँ दी गई टिप्स आपके काम आ सकती है। वर्कआउट को लंबे समय के लिए छोड़ने के बाद दोबारा जिम ज्वाइन करना चाहते है तो आपको कुछ बातों का ख्याल रखना बहुत जरूरी है।


लंबे अंतराल के बाद व्यायाम में दोबारा उतने ही वजन को फिर से उठाना मुश्किल होता है। व्यायाम में ब्रेक के बाद आपका स्टैमिना और एंड्यूरेंस पहले की तुलना में काफी कम हो जाता है। इसलिए दोबारा एक्सरसाइज की शुरूआत करने के लिए आपको कुछ सावधानी को रखना बहुत ही जरूरी होता है।

ग्लूटियस

ग्लूटल मांसपेशियां तीन मांसपेशियों ग्लूटस मैक्सिमस, ग्लूटस मेडियस और ग्लूटस मिनिमस का समूह होती हैं जो नितंब बनाती हैं। तीन मांसपेशियां इलियम (ilium) और त्रिकास्थि (sacrum) से उत्पन्न होती हैं और फीमर पर सम्मिलित होती हैं।

लेग वर्कआउट करने के फायदे रनिंग में

लेग वर्कआउट एथलीटों के लिए बहुत फायदेमंद होती है। इसका कारण यह है कि लेग एक्सरसाइज करने से पैरों में मजबूती आती है और एनर्जी मिलती है। जिसके कारण हायर जंप करने और कोर्ट या फील्ड में खेलने वाले खिलाड़ियों की खेल क्षमता बढ़ती है।

लेग वर्कआउट करने के फायदे घुटनों को मजबूत करने में

जब आप पैरों को मजबूत करने की एक्सरसाइज करते है तो इससे आपके घुटने भी मजबूत होते होते है। जिसकी वजह से घुटनों के जोड़ो में होने वाले दर्द से राहत मिलती है।

काफ

काफ मसल्स निचले पैर की पीछे, पिंडली पेशी है जो वास्तव में दो मांसपेशियों से बनी है। गैस्ट्रोकनेमियस बड़ी पिंडली पेशी है, जो त्वचा के नीचे दिखाई देने वाले उभार को बनाता है। गैस्ट्रोकनेमियस (Gastrocnemius) के दो भाग या “सिर” होते हैं, जो एक साथ मिलकर अपने डायमंड शेप बनाते हैं।

क्वाड्रिसेप्स

क्वाड्रिसेप्स फिमोरिस एक हिप फ्लेक्सर और एक घुटने एक्सटेंसर है। इसमें चार मांसपेशियां होती हैं जिसमें तीन बड़ी मांसपेशियां और एक रेक्टस फेमोरिस (rectus femoris) होती हैं। यह जांघों की सामूहिक रूप से शरीर में सबसे शक्तिशाली मांसपेशियों में से एक हैं।

लेग वर्कआउट के फायदे

पैरो के लिए एक्सरसाइज करने के फायदे आपके पैरों की मांसपेशियों को मजबूत करने में मदद करते है। आज हम आपको लेग वर्कआउट करने के फायदे के बारे में बताएंगे। अधिकांश लोग जो जिम जाते है वह केवल अपनी अपर बॉडी को ध्यान में रखा कर एक्सरसाइज करते है। ऐसे में उनकी ऊपर की बॉडी तो अच्छी हो जाती है लेकिन टांगे पतली रह जाती है।

“योग विज्ञान है” – ओशो

 योग विज्ञान है, विश्वास नहीं। योग की अनुभूति के लिए किसी तरह की श्रद्धा आवश्यक नहीं है। योग का इस्लाम, हिंदू, जैन या ईसाई से कोई संबंध नहीं है। 

जिन्हें हम धर्म कहते हैं वे विश्वासों के साथी हैं। योग विश्वासों का नहीं है, जीवन सत्य की दिशा में किए गए वैज्ञानिक प्रयोगों की सूत्रवत प्रणाली है। इसलिए पहली बात मैं आपसे कहना चाहूंगा वह यह कि  योग विज्ञान है, विश्वास नहीं। योग की अनुभूति के लिए किसी तरह की श्रद्धा आवश्यक नहीं है। योग के प्रयोग के लिए किसी तरह के अंधेपन की कोई जरूरत नहीं है।

नास्तिक भी योग के प्रयोग में उसी तरह प्रवेश पा सकता है जैसे आस्तिक। योग नास्तिक-आस्तिक की भी चिंता नहीं करता है। विज्ञान आपकी धारणाओं पर निर्भर नहीं होता; विपरीत, विज्ञान के कारण आपको अपनी धारणाएं परिवर्तित करनी पड़ती हैं। कोई विज्ञान आपसे किसी प्रकार के बिलीफ, किसी तरह की मान्यता की अपेक्षा नहीं करता है। विज्ञान सिर्फ प्रयोग की, एक्सपेरिमेंट की अपेक्षा करता है।