योग का अर्थ,परिभाषा महत्व एवं उद्देश्य

प्रस्तावना ज्ञान का मूल वेदों में निहित है। दार्शनिक चिन्तन तथा वैदिक ज्ञान का निचोड आत्म तत्व की प्राप्ति है। आत्मतत्व की प्राप्ति का साधन योग विद्या के रूप में इनमें (वेद) उपलब्ध है। योगसाधना का लक्ष्य कैवल्य प्राप्ति है। वैदिक ग्रन्थ, उपनिषद्, पुराण और दर्शन आदि में यत्र-तत्र योग का वर्णन मिलता है । जिससे यह पुष्टि होती है कि योग वैदिक काल से सृष्टि में उपलब्ध है। योग के अर्थ एवं परिभाषाओं का वर्णन प्रस्तुत इकाई में किया जा रहा है।
उद्देश्य- प्रस्तुत इकाई का अध्ययन करने के पश्चात आप- योग शब्द का अर्थ तथा परिभाषाओं का स्वरूप जान सकेंगे। वैदिक काल, उपनिषदकाल, दर्शनकाल, टीकाकाल में योग का आधार समझ सकेंगें। भक्तिकाल के साथ योग के व्यावहारिक काल हठयोग काल का अध्ययन कर सकेंगे। विभिन्न ग्रन्थों के आधार पर योग के बाधक तत्वों को जान सकेंगें। विभिन्न ग्रन्थों के आधार पर योग के साधक तत्वों को जान सकेंगें। योग का सर्वागीण क्षेत्रों में महत्व जान सकेंगे।
url
Article Category
- Log in to post comments