क्या आप स्वयं के प्रति सच्चे हैं? - ओशो

जानने के लिए अपने श्वास के प्रति सजग हों। 

 

" जब तुम कह रहे हो कि तुम खुश हो और तुम खुश नहीं हो, तो तुम्हारी श्वास अनियमित होगी।श्वास सहज नहीं होगी।यह असंभव है।"

 

बैठ जायें और एक दूसरे की आखों में देखें - ओशो

पहला चरण : दूसरे का अवलोकन करो

"बैठ जायें और एक दूसरे की आखों में देखें (बेहतर होगा पलकें कम से कम झपकें, एक कोमल टकटकी) बिना सोचे गहरे, और गहरे देखें।

 

"यदि आप सोचते नहीं, यदि आप केवल आंखों के भीतर टकटकी लगाकर देखते हैं तो शीघ्र ही तरंगें विलीन हो जायेंगी और सागर प्रकट होगा। यदि आप आंखों में गहरे देख सकते हैं तो आप अनुभव करेंगे कि व्यक्ति विलीन हो गया है, मुखड़ा मिट गया। एक सागरीय घटना पीछे छिपी है और यह व्यक्ति बस उस गहराई का लहराना था, कुछ अनजाने की, कुछ छुपे हुए की एक तरंग।"

 

सुप्त भद्रासन

सुप्तभद्रासन: योग में वर्णित एक विशेष आसन। लेटते समय भद्रासन करने की मुद्रा के रूप में इसे सुप्तभद्रासन (सुप्त-भद्रा + आसन) नाम दिया गया है। मूल रूप से, इस आसन की शारीरिक मुद्रा भद्रासन के समान नहीं है। 


तरीका

1. सबसे पहले पीठ के बल लेट जाएं।
2. अब पैरों को मोड़कर छाती पर ले आएं और पैरों के दोनों तलवों को आपस में मिला लें।
3. दोनों हाथों से पैरों को एक साथ पकड़ें और जाँघों के बीच खींचे।
4. अब अपनी श्वास को सामान्य रखें और 30 सेकंड तक स्थिर रहें।
5. फिर आसन को छोड़ दें और 30 सेकंड के लिए आराम करें।
. फिर आसन को दो बार और करें।

स्वस्तिकासन

स्वस्तिक का अर्थ होता है  शुभ। यह ध्यान के लिए एक उम्दा आसन है। इसके बहुत सारे शारीरक एवं मानसिक परेशानियों से आपको बचाता है।  यह तन एवं मन में संतुलन बनाने में बड़ी भूमिका निभाता है। स्वस्तिकासन का महत्त्व इस बात से समझा जा सकता है कि योगग्रंथ जैसे हठयोग प्रदीपिका,घेरण्ड सहिंता में बैठकर किये जाने वाले आसनो का अगर जिक्र किया जाये तो सबसे पहले स्वस्तिकासन का ही नाम आता है।  भगवान आदिनाथ ने जिन चार आसनो को सबसे महत्त्वपूर्ण बताया है उनमे  से एक स्वस्तिकासन भी है।

सुप्त-वज्रासन

सुप्त का अर्थ होता है सोया हुआ अर्थात वज्रासन की स्थिति में सोया हुआ। इस आसन में पीठ के बल लेटना पड़ता है, इसिलिए इस आसन को सुप्त-वज्रासन कहते है, जबकि वज्रासन बैठकर किया जाता है। यह आसन वज्रासन का विस्तृत रूप है। इस आसन को हलासन या कोई भी आगे की ओर किये जाने वाले आसनों के बाद करें। इस आसन में स्वाधिष्ठान चक्र, मेरूदंड तथा कमर के जोड़ पर ध्यान एकाग्र करना चाहिए।

सुप्त वीरासन

वीरासन का ही एक रूपांतर, सुप्त वीरासन सिरदर्द से लेकर साइटिका तक में राहत दे सकता है। इस आसन को अक्सर लोग नहीं करते क्यूंकि इसके अभ्यास की शुरुआत में थोड़ी असहजता महसूस होती है। पर इसके अनगिनत लाभों की वजह से यह आपके योगाभ्यास को नए स्तर तक पहुँचाने का दरवाज़ा बन सकता है

तो आइये, सुप्त वीरासन की विधि जानें-

अग्निसार क्रिया

सुखासन, सिद्धासन, पद्मासन, वज्रासन में बैठें। यह क्रिया में कपालभाती प्राणायाम जैसा नहीं है, बार बार साँस बाहर नहीं करनी है। सास को पूरी तरह बाहर निकालने के बाद बाहर ही रोक कर पेट को आगे पीछे करना है।

लाभ

  1. कब्ज, ऐसिडिटी, गँसस्टीक, जैसी पेट की सभी समस्याऐं मिट जाती हैं।
  2. हर्निया पूरी तरह मिट जाता है।
  3. धातु, और पेशाब के संबंधित सभी समस्याऐं मिट जाती हैं।
  4. मन की एकाग्रता बढ़ेगी|
  5. व्यंधत्व से छुटकारा मिल जायेगा|

उत्तानासन

उत्तानासन (Uttanasana) भी योग विज्ञान का ऐसा ही आसन है। उत्तानासन को अंग्रेजी में Intense Forward-Bending Pose, Intense Stretch Pose, Standing Forward Bend, Standing Forward Fold Poseया Standing Head to Knees Pose भी कहा जाता है। ये आसन पूरे शरीर को अच्छी स्ट्रेच देता है और दिमाग में ऑक्सीजन की सप्लाई बढ़ाने में भी मदद करता है।

इसीलिए इस आर्टिकल में मैं आपको उत्तानासन क्या है, के अलावा उत्तानासन के फायदे, उत्तानासन करने का सही तरीका, विधि और सावधानियों के बारे में जानकारी दूंगा।

स्तन को बड़ा करने के लिए योग धनुराषन

यह बहुत सामान्य सा आसन है। इसके करते समय धनुष की आकृति बनती है इसलिए इसे धनुराषन कहा जाता है। यह आसन महिलाओं के लिए बहुत ही लाभदायक है। यह न सिर्फ महिलाओं के स्तन का आकार बढ़ाने में सहायक होता है बल्कि जिन महिलाओं को गर्भधारण करने में समस्या आती है यह उनके लिए भी फायदेमंद होता है। यह मांसपेशियों के दर्द को कम करने के साथ ही मासिक धर्म में परेशानी को भी दूर करता है और कब्ज से मुक्ति दिलाता है। इस आसन को सुबह या शाम खाली पेट करना चाहिए और 15 से 30 सेकेंड तक इसी मुद्रा में बने रहना चाहिए।

“योग विज्ञान है” – ओशो

 योग विज्ञान है, विश्वास नहीं। योग की अनुभूति के लिए किसी तरह की श्रद्धा आवश्यक नहीं है। योग का इस्लाम, हिंदू, जैन या ईसाई से कोई संबंध नहीं है। 

जिन्हें हम धर्म कहते हैं वे विश्वासों के साथी हैं। योग विश्वासों का नहीं है, जीवन सत्य की दिशा में किए गए वैज्ञानिक प्रयोगों की सूत्रवत प्रणाली है। इसलिए पहली बात मैं आपसे कहना चाहूंगा वह यह कि  योग विज्ञान है, विश्वास नहीं। योग की अनुभूति के लिए किसी तरह की श्रद्धा आवश्यक नहीं है। योग के प्रयोग के लिए किसी तरह के अंधेपन की कोई जरूरत नहीं है।

नास्तिक भी योग के प्रयोग में उसी तरह प्रवेश पा सकता है जैसे आस्तिक। योग नास्तिक-आस्तिक की भी चिंता नहीं करता है। विज्ञान आपकी धारणाओं पर निर्भर नहीं होता; विपरीत, विज्ञान के कारण आपको अपनी धारणाएं परिवर्तित करनी पड़ती हैं। कोई विज्ञान आपसे किसी प्रकार के बिलीफ, किसी तरह की मान्यता की अपेक्षा नहीं करता है। विज्ञान सिर्फ प्रयोग की, एक्सपेरिमेंट की अपेक्षा करता है।