कुंजल क्रिया

कुंजल क्रिया का अर्थ और कार्य 

कुंजल क्रिया में पारंगत व्यक्ति के जीवन में कभी भी कोई रोग और शोक नहीं रह जाता। यह क्रिया वास्तव में बहुत ही शक्तिशाली है। पानी से पेट को साफ किए जाने की क्रिया को कुंजल क्रिया कहते हैं। इस क्रिया से पेट व आहार नली साफ हो जाती है। मूलत: यह क्रिया वे लोग कर सकते हैं जो धौति क्रिया नहीं कर सकते हों। इस क्रिया को किसी योग शिक्षक की देखरेख में ही करना चाहिए।


कुंज क्रिया की विधि  

योग बंध

प्राणमय कोश की साधना में बन्धों का प्रमुख स्थान है। ध्यानात्मक आसनों से पूर्ण लाभ उठाने के लिए उनके साथ-साथ तीन बंध साधने चलने की व्यवस्था योगियों ने की है। प्राणायाम के लिए ये बंध पूरक एवं सहयोगी सिद्ध झेते हैं। इनका पूर्ण फल स्वतन्त्रतः तो नहीं, ध्यानात्मक आसनों व प्राणायाम के साथ ही मिलता है जो मानसिक एवं आध्यात्मिक उत्कर्ष के रूप में होता है। ये कुल तीन हैं- (१) मूल बंध (२) उड्डियान बंध, और (३) जालंधर बंध।  (१) मूल बंध- प्राणायाम करते समय गुदा के छिद्रों को सिकोड़कर ऊपर की ओर खींचे रखना मूल-बंध कहलाता है। गुदा को संकुचित करने से ‘अपान’ स्थिर रहता है। वीर्य का अधः प्रभाव रुककर स्थिरता आती

कब्ज़ से मुक्ति पाने के लिये करें योगआसन

यदि मल सख्त हो और रोज न आये तो उसे कब्ज़ कहेंगे। बहुत अधिक समय से इस समस्या के होने के कारण इसको पुराना कब्ज़ कहते हैं। इसमें मल बहुत सख्त हो जाता है तथा मल को बाहर करने के लिये जोर लगाना पड़ता है। मल को नर्म करने के लिये आवश्यक है कि उस में पानी की मात्रा अधिक हो।  विभिन्न प्रकार के आसनों को नियमित रूप से करने पर हर प्रकार के कब्ज़ से राहत मिलती है। 

कब्ज़ दूर करने के लिये योगआसन 

कपालभाति : 

नौकासन

नौका आसन: इस आसन की अंतिम अवस्था में हमारे शरीर की आकृति नौका समान दिखाई देती है, इसी कारण इसे नौकासन कहते है। इस आसन की गिनती पीठ के बल लेटकर किए जाने वाले आसनों में मानी जाती है।

योगा और आसन में क्या अंतर है?

महर्षि पतंजलि की योग प्रणाली में 8 हिस्से हैं, जिन्हें अष्टांगिक योग कहा जाता है। इनमें से प्रथम पांच को बहिरंग तथा अंतिम तीन को अंतरंग कहते हैं।

प्रथम पांचों के नाम इस प्रकार हैं—यम नियम आसन प्राणायाम प्रत्याहार।

अंतिम तीन कहलाते हैं—धारणा ध्यान और समाधि।

आसन का अर्थ है : शरीर की ऐसी पोजीशन जिसमें हम अधिक देर तक सुख पूर्वक स्थिर रह सकें।

एकपाद उत्तानासन

एकपाद उत्तानासन करने की विधि-

  1. सर्वप्रथम सीधे चित्त पीठ के बल लेट जाइए हाथों को बिल्कुल शरीर के बराबर रखिए अब धीरे से साँस लेते हुए दायें पैर को( घुटने से सीधा रखते हुए ) 60 डिग्री का कोण बनाते हुए उठाइए और साँस निकालते हुए वापिस लाइए ठीक  इसी तरह  बायें पैर से दोहराईए 
  2. एक बार दायें से और एक बार बायें से 
  3. इसी  तरह 4-5 बार दोहराए

एकपाद उत्तानासन करने की लाभ-

  1. पेट की समस्यायों में लाभकारी 
  2. वायु को नियंत्रित करता है 

सब काल्पनिक है - ओशो

कभी सिनेमाघर में इसका प्रयोग करें। यह एक अच्छा ध्यान है। बस इतना स्मरण रखने की चेष्टा करें कि यह काल्पनिक है, यह काल्पनिक है...स्मरण रखें कि यह काल्पनिक है और पर्दा खाली है। और आप चकित हो जाएंगे--केवल कुछ सेकेंड के लिए आप स्मरण रख पाते हैं और फिर भूल जाते हैं, फिर यह यथार्थ लगने लगता है। जब भी आप स्वयं को भूल जाते हैं, सपना असली हो जाता है। जब भी आप स्वयं को स्मरण रखते हैं--कि मैं असली हूं, आप अपने को झकझोरते हैं--तब पर्दा पर्दा रह जाता है और जो भी उस पर चल रहा है सब काल्पनिक हो जाता है।

বুদ্ধাসন

বুদ্ধাসন

যোগশাস্ত্রে বর্ণিত আসন বিশেষ। বুদ্ধ শব্দের অর্থ জ্ঞাত। জ্ঞান বিকাশের আসন হিসাবে এই আসনের নাম রাখা হয়েছে বুদ্ধাসন (বুদ্ধ + আসন)।

मंडूकासन

मंडूकासन शब्द संस्कृत के दो शब्दों मंडूक और आसन से मिलकर बना है। मांडुक का अर्थ मेंढक है और आसन का अर्थ योग मुद्रा से है । इसके अभ्यास के अंतिम चरण में शरीर मेंढक की तरह दिखने लगता है, इसलिए कारण इसका नाम मंडूकासन है। इस के अभ्यास से पेट के अंगों की मालिश और पेट पर अतिरिक्त वसा को करने में मदद मिलती है।

योग का महत्व पारिवारिक क्षेत्र में

व्यक्ति का परिवार समाज की एक महत्वपूर्ण इकाई होती है | तथा पारिवारिक संस्था व्यक्ति के विकास की नींव होती है | योगाभ्यास से आए अनेकों सकारात्मक परिणामों से यह भी ज्ञात हुआ है कि यह विद्या व्यक्ति में पारिवारिक मूल्यों एवं मान्यताओं को भी जागृत करती है | योग के अभ्यास व इसके दर्शन से व्यक्ति में प्रेम आत्मीयता अपनत्व एवं सदाचार जैसे गुणों का विकास होता है और निसंदेह यह गुण एक स्वस्थ परिवार की आधारशिला होते हैं |

“योग विज्ञान है” – ओशो

 योग विज्ञान है, विश्वास नहीं। योग की अनुभूति के लिए किसी तरह की श्रद्धा आवश्यक नहीं है। योग का इस्लाम, हिंदू, जैन या ईसाई से कोई संबंध नहीं है। 

जिन्हें हम धर्म कहते हैं वे विश्वासों के साथी हैं। योग विश्वासों का नहीं है, जीवन सत्य की दिशा में किए गए वैज्ञानिक प्रयोगों की सूत्रवत प्रणाली है। इसलिए पहली बात मैं आपसे कहना चाहूंगा वह यह कि  योग विज्ञान है, विश्वास नहीं। योग की अनुभूति के लिए किसी तरह की श्रद्धा आवश्यक नहीं है। योग के प्रयोग के लिए किसी तरह के अंधेपन की कोई जरूरत नहीं है।

नास्तिक भी योग के प्रयोग में उसी तरह प्रवेश पा सकता है जैसे आस्तिक। योग नास्तिक-आस्तिक की भी चिंता नहीं करता है। विज्ञान आपकी धारणाओं पर निर्भर नहीं होता; विपरीत, विज्ञान के कारण आपको अपनी धारणाएं परिवर्तित करनी पड़ती हैं। कोई विज्ञान आपसे किसी प्रकार के बिलीफ, किसी तरह की मान्यता की अपेक्षा नहीं करता है। विज्ञान सिर्फ प्रयोग की, एक्सपेरिमेंट की अपेक्षा करता है।