अवधान को बढ़ा - ओशो
जहां कहीं भी तुम्हारा अवधान उतरे, उसी बिंदु पर, अनुभव।
इस विधि में सबसे पहले तुम्हें अवधान साधना होगा, अवधान का विकास करना होगा। तुम्हें एक भांति का अवधानपूर्ण रुख, रुझान विकसित करना होगा; तो ही यह विधि संभव होगी। और तब जहां कहीं भी तुम्हारा अवधान उतरे, तुम अनुभव कर सकते हो-स्वयं को अनुभव कर सकते हो। एक फूल को देखने भर से तुम स्वयं को अनुभव कर सकते हो। तब फूल को देखना सिर्फ फूल को ही देखना नहीं है वरन देखने वाले को भी देखना है। लेकिन यह तभी संभव है जब तुम अवधान का रहस्य जान लो।
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गर्भ की शांति पायें - ओशो
जब भी तुम्हारे पास समय हो, बस मौन में निढाल हो जाओ, और मेरा अभिप्राय ठीक यही है-निढाल, मानो कि तुम एक छोटे बच्चे हो अपनी मा के गर्भ में
फर्श पर अपने घुटनों के बल बैठ जाओ और धीरे-धीरे अपना सिर भी फर्श पर लगाना चाहोगे, तब सिर फर्श पर लगा देना। गर्भासन में बैठ जाना जैसे बच्चा अपनी मां के गर्भ में अपने अंगों को सिमटाकर लेटा होता है। और शीघ्र ही तुम पाओगे कि मौन उतर रहा है, वही मौन जो मां के गर्भ में था।
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संतुलन ध्यान - ओशो
लाओत्से के साधना-सूत्रों में एक गुप्त सूत्र आपको कहता हूं, जो उसकी किताबों में उलेखित नहीं है, लेकिन कानों-कान लाओत्से की परंपरा में चलता रहा है। वह सूत्र है लाओत्से की ध्यान की पद्धति का। वह सूत्र यह है।
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अच्छी नींद के लिये योग करें
यदि आदतन आप को रात को अच्छी नींद नहीं आती,तो यह संभव है कि आप की उम्र तेजी से ज्यादा बढ़ रही है और इसके अतिरिक्त आप को अच्छा नहीं लगता होगा और आपकी भ्रमित सोच होगी | जब हम नींद में होते हैं तब हमारा शरीर के कोशिका स्तर में सुधार होता है और विषाक्त पदार्थों का निष्कासन होता है | इसलिये प्रतिदिन ६-८ घंटों की नींद आवश्यक है |
यदि आप की पर्याप्त नींद नहीं होती, तो योग इसमें सहायता करेगा | निरंतर योग के अभ्यास से कई रोगों का निदान हुआ है जिसमें अनिद्रा और असामान्य नींद की आदतें शामिल है | दिन के अंत में योग तनाव से मुक्ति देता है जिससे रात में अच्छी नींद आती है |
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Halasana
Halasana (Sanskrit: हलासन; IAST: halāsana) or Plough pose is an inverted asana in hatha yoga and modern yoga as exercise. Its variations include Karnapidasana with the knees by the ears, and Supta Konasana with the feet wide apart.
Etymology and origins
The completed pose resembles a traditional plough.
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Hanumanasana
Hanumanasana (Sanskrit: हनुमानासन) or Monkey Pose is a seated asana in modern yoga as exercise. It is the yoga version of the front splits.
Etymology and origins
The name comes from the Sanskrit words Hanuman (a divine entity in Hinduism who resembles a monkey) and asana (posture), and commemorates the giant leap made by Hanuman to reach the Lankan islands from the mainland of India.
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કૂર્માસન
કૂર્મ એટલે કાચબો. આ આસનની મુદ્રા કાચબા જેવી છે એટલે તેને કૂર્માસન કહે છે. કાચબો સૃષ્ટિના પાલનહાર ભગવાન વિષ્ણુનો અવતાર ગણાય છે. સમુદ્રમંથન વખતે વિષ્ણુ ભગવાને મહાકાય કાચબાનું રૂપ લીધું હતું અને બ્રહ્માંડના તળિયાનું વિભાજન કરેલ.
આ આસન ત્રણ તબક્કે થાય છે. છેલ્લા તબક્કામાં કાચબા જેવી મુદ્રા બને છે, જેમાં હાથ અને પગ અને માથું ઢાલ હેઠળ ઢંકાઈ ગયું હોય અને એટલે એને સુપ્ત કૂર્માસન-સૂતેલો કાચબો કહે છે.
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বৃক্ষাসন
বৃক্ষসন মানে গাছের মতো ভঙ্গি করা। এই আসন উঠে দাঁড়িয়ে কাজ করা হয়। নটরাজ ভঙ্গির মতো এই আসনটি শারীরিক ভারসাম্যের জন্যও খুব উপকারী।
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హలాసనము
వికీపీడియా
హలాసనము (సంస్కృతం: हलसन) యోగాలో ఒక విధమైన ఆసనము. నాగలి రూపంలో ఉంటుంది కాబట్టి ఈ ఆసనాన్ని హలాసనమంటారు. కర్ణపీడాసనం, సప్తకోణాసనం ఈ ఆసనానికి వైవిధ్య రూపాలు.
ఉనికి
ఈ పేరు సంస్కృత శబ్దం హాల నుడ్ంఇ వచ్చింది. హాల అంటే " నాగలి " అని అర్థం. ఈ భంగిమను 19 వ శతాబ్దంలో శ్రీతత్వనిధిలో లాంగలాసనం అని వర్ణించారు. దీనిక్కూడా సంస్కృతంలో నాగలి అనే అర్థం.
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श्वास को शिथिल करो - ओशो
जब भी आपको समय मिले, कुछ देर के लिए श्वास-प्रक्रिया को शिथिल कर दें। और कुछ नहीं करना है--पूरे शरीर को शिथिल करने की कोई जरूरत नहीं है। रेलगाड़ी में, हवाई जहाज में या कार में बैठे हैं, किसी और को मालूम भी नहीं पड़ेगा कि आप कुछ कर रहे हैं। बस श्वास-प्रक्रिया को शिथिल कर दें। जैसे वह सहज चलती है, वैसे चलने दें। फिर आंखें बंद कर लें और श्वास को देखते रहें--भीतर गई, बाहर आई, भीतर गई।
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“योग विज्ञान है” – ओशो
योग विज्ञान है, विश्वास नहीं। योग की अनुभूति के लिए किसी तरह की श्रद्धा आवश्यक नहीं है। योग का इस्लाम, हिंदू, जैन या ईसाई से कोई संबंध नहीं है।
जिन्हें हम धर्म कहते हैं वे विश्वासों के साथी हैं। योग विश्वासों का नहीं है, जीवन सत्य की दिशा में किए गए वैज्ञानिक प्रयोगों की सूत्रवत प्रणाली है। इसलिए पहली बात मैं आपसे कहना चाहूंगा वह यह कि योग विज्ञान है, विश्वास नहीं। योग की अनुभूति के लिए किसी तरह की श्रद्धा आवश्यक नहीं है। योग के प्रयोग के लिए किसी तरह के अंधेपन की कोई जरूरत नहीं है।
नास्तिक भी योग के प्रयोग में उसी तरह प्रवेश पा सकता है जैसे आस्तिक। योग नास्तिक-आस्तिक की भी चिंता नहीं करता है। विज्ञान आपकी धारणाओं पर निर्भर नहीं होता; विपरीत, विज्ञान के कारण आपको अपनी धारणाएं परिवर्तित करनी पड़ती हैं। कोई विज्ञान आपसे किसी प्रकार के बिलीफ, किसी तरह की मान्यता की अपेक्षा नहीं करता है। विज्ञान सिर्फ प्रयोग की, एक्सपेरिमेंट की अपेक्षा करता है।