वशिष्ठासन योग के फायदे संतुलन और स्थिरता में

साइड प्लैंक पोज़ (वसिष्ठासन) का अभ्यास संतुलन और स्थिरता के लिए किया जाता हैं। इस आसन को करने से रीढ़ की हड्डी के साथ-साथ दोनों तरफ समान खिंचाव और स्थिरता पाने में मदद मिलती हैं। इससे मिलने वाला खिंचाव, स्थिरता पाने और ध्यान केंद्रित करने के साथ-साथ मन के दोनों हिस्सों में संतुलन लाने में मदद करता है।

वशिष्ठासन योग हाथों को मजबूत करे

वाशिष्ठासन योग का अभ्यास मुख्य रूप से हाथों, भुजाओं और कंधों की ताकत में सुधार करने के लिए किया जाता है। इसलिए इसे वन साइड आर्म बैलेंस पोज भी कहा जाता है। इस योग का अभ्यास कंधे की हड्डी को जोड़ने के लिए किया जाता हैं, क्योंकि यह सभी हाथ संतुलन योग के लिए आवश्यक है। वाशिष्ठासन योग आपके हाथों को टोन करने में भी मदद करता हैं।

वशिष्ठासन योग करने फायदे

वशिष्ठासन योग आसन हमारे शरीर के लिए बहुत ही फायदेमंद हैं। यह हमारे शरीर में होने वाली कई प्रकार की समस्या से हमें दूर रखता हैं। आइये इसके लाभों को विस्तार से जाते हैं।

शुरुआती लोगों के लिए वशिष्ठासन योग करने के टिप

यदि आप एक बिगिनर हैं और योग अभ्यास की अभी अभी शुरुआत कर रहें है तो जब आप इस आसन में होते हैं तो अपने आप को संतुलित करना मुश्किल हो सकता है। इसके लिए आपको वशिष्ठासन योग को करते समय अपने घुटनों को फर्श पर रखना चाहिए जिससे आपके हाथों को ताकत मिलती है और फिर आप अपने शरीर के भार को उठा सकते हैं। इसके अलावा अगर बिगिनर को एक पैर को दूसरे पैर पर रखने में भी कठिनाई होती है तो वो पैरों को थोड़ा अलग रखें, जैसे कि दाएं पैर का किनारा बाहर और बाएं पैर का किनारा भीतरी ओर रहें।

वशिष्ठासन योग करने का तरीका

वशिष्ठासन योग आसन आपको पहले करने थोड़ा कठिन लग सकता है, लेकिन लगातार अभ्यास के बाद आप इस योग को आसानी से कर सकते हैं। आप वशिष्ठासन योग करने के लिए निम्न स्टेप्स को करें।

वशिष्ठासन योग करने से पहले करें यह आसन

वशिष्ठासन योग करने से पहले आप नीचे दिए गए कुछ आसन का अभ्यास करें जिससे आपको इस आसन करने में आसानी होगी-

 

  • अधोमुख श्वान आसन योग
  • प्लैंक पोज़
  • अर्धचन्द्रासन योग
  • सुप्त पादंगुष्ठासन योग
  • सुप्त वीरासन योग
     

वशिष्ठासन क्या है

वसिष्ठासन प्लैंक पोज़ का साइड वेरिएशन है और मध्यवर्ती स्तर के अंतर्गत आता है। वशिष्ठासन योग का नाम संस्कृत से लिया गया हैं। “वशिष्ठ” सात ऋषियों में से एक महान ऋषि का नाम है, इसलिए वसिष्ठासन योग महान ऋषि वशिष्ठ को समर्पित है। वसिष्ठासन योग दो शब्दों “वशिष्ठ” और “आसन” से मिलकर बना है, जिसमें वशिष्ठ एक महान ऋषि का नाम है जिसका अर्थ “धनवान” होता है और दूसरा शब्द “आसन” जिसका अर्थ “पोज़ या मुद्रा” होता हैं। यह आसन स्वास्थ्य का पावरहाउस है, इसलिए इसका नाम वशिष्ठ के नाम पर रखा गया है। वसिष्ठासन को साइड प्लैंक पोज (side plank pose) के नाम से भी जाना जाता है। इस आसन को वन आर्म बैलेंस पोज (One Arm Bala

वशिष्ठासन योग करने की विधि और फायदे

वशिष्ठासन योग पूरी तरह से हाथों पर संतुलन की मुद्रा है, जो सीधे आपकी कलाई और ट्राइसेप को लक्षित करता है। साइड प्लैंक पोज मध्यवर्ती स्तर योगियों के लिए एक आदर्श आसन है। जब आप इस आसन का अभ्यास करते हैं, तो आपका मन शांत और तनाव मुक्त होता है। लेकिन जब आप तनावमुक्त हो रहे होते हैं, तो आपके हाथ और कंधे इस योग के माध्यम से ताकत पैदा कर रहे होते हैं। वशिष्ठासन योग हार्ट चक्र को सक्रिय करने के लिए जाना जाता है। यह आसन एक शक्तिशाली आसन है जो आपको आंतरिक शक्ति विकसित करने में भी मदद करता है। इस आसन को करते समय अपने शरीर को पूरी तरह से सीधा रखा जाता है। वाशिष्ठासन योग बच्चों या पुरुषों सभी में शारीरिक

योनि मुद्रा योग करते समय रखें ये सावधानियां

वैसे तो योग, आसन और मुद्राएं स्वास्थ्य एवं मन के लिए लाभकारी होती हैं लेकिन कुछ विशेष परिस्थितियों में इन मुद्राओं का अभ्यास डॉक्टर की सलाह लेकर करना चाहिए।

अगर आपको मनोवैज्ञानिक समस्याएं हैं तो डॉक्टर के परामर्श के बाद ही इस मुद्रा का अभ्यास करें।
अगर आपको रीढ़ की हड्डी में तकलीफ है तो इसे ना करें।
आपके घुटनों में चोट लगी हो और आप आराम से मोड़कर बैठ नहीं पा रहे हों तो योनि मुद्रा का अभ्यास ना करना ही बेहतर है।
इसके अलावा यदि आपकी कमर में तेज दर्द हो जिसकी वजह से आप बैठ नहीं पा रहे तो यह मुद्रा आपके लिए नहीं है।
 

“योग विज्ञान है” – ओशो

 योग विज्ञान है, विश्वास नहीं। योग की अनुभूति के लिए किसी तरह की श्रद्धा आवश्यक नहीं है। योग का इस्लाम, हिंदू, जैन या ईसाई से कोई संबंध नहीं है। 

जिन्हें हम धर्म कहते हैं वे विश्वासों के साथी हैं। योग विश्वासों का नहीं है, जीवन सत्य की दिशा में किए गए वैज्ञानिक प्रयोगों की सूत्रवत प्रणाली है। इसलिए पहली बात मैं आपसे कहना चाहूंगा वह यह कि  योग विज्ञान है, विश्वास नहीं। योग की अनुभूति के लिए किसी तरह की श्रद्धा आवश्यक नहीं है। योग के प्रयोग के लिए किसी तरह के अंधेपन की कोई जरूरत नहीं है।

नास्तिक भी योग के प्रयोग में उसी तरह प्रवेश पा सकता है जैसे आस्तिक। योग नास्तिक-आस्तिक की भी चिंता नहीं करता है। विज्ञान आपकी धारणाओं पर निर्भर नहीं होता; विपरीत, विज्ञान के कारण आपको अपनी धारणाएं परिवर्तित करनी पड़ती हैं। कोई विज्ञान आपसे किसी प्रकार के बिलीफ, किसी तरह की मान्यता की अपेक्षा नहीं करता है। विज्ञान सिर्फ प्रयोग की, एक्सपेरिमेंट की अपेक्षा करता है।