अधोमुख श्वानासन करने का तरीका

सबसे पहले जमीन पर एकदम सीधे खड़े हो जाएंं और उसके बाद दोनों हाथों को आगे करते हुए नीचे जमीन की ओर झुक जाएं।
झुकते समय आपके घुटने सीधे होने चाहिए और कूल्हों(hips) के ठीक नीचे होने चाहिए जबकि आपके दोनों हाथ कंधे के बराबर नहीं बल्कि इससे थोड़ा सा पहले झुका होना चाहिए।
अपने हाथों की हथेलियों को झुकी हुई अवस्था में ही आगे की ओर फैलाएं और उंगलियां समानांतर रखें।
श्वास छोड़ें और अपने घुटनों को अधोमुख श्वानासन मुद्रा के लिए हल्का सा धनुष के आकार में मो़ड़े और एड़ियों को जमीन से ऊपर उठाएं।

अधोमुख श्वानासन के फायदे और करने का तरीका

अधोमुख श्वानासन के फायदे और करने का तरीका, अधोमुख श्वानासन संस्कृत का शब्द है जहां अधो का अर्थ आगे (forward), मुख का अर्थ चेहरा (Face) श्वान का अर्थ कुत्ता (Dog) और आसन का अर्थ मुद्रा(posture) है। इस आसन को अधोमुख श्वानासन इसलिए कहा जाता है क्योंकि इस आसन को करते समय ठीक वैसे ही आकृति (pose) बनायी जाती है जैसे श्वान आगे की ओर झुककर अपने शरीर को खींचते समय बनाता है। अधोमुख श्वानासन सूर्य नमस्कार का एक आवश्यक हिस्सा है और यह पूरे शरीर को मजबूत बनाने के साथ ही मांसपेशियों को लचीला बनाने में मदद करता है। अधोमुख श्वानासन कंधों में अकड़न से छुटकारा दिलाने और रीढ़ की हड्डी (spine) को बढ़ाने और पैर

योग का महत्व आध्यात्मिक क्षेत्र में

आर्थिक दृष्टि से महत्त्व गौण नजर आता हो लेकिन सूक्ष्म रूप से देखने पर ज्ञात होता है कि मानव जीवन में आर्थिक स्तर और योग विद्या का सीधा सम्बन्ध है । शास्त्रों में वर्णित 'पहला सुख निरोगी काया, बाद में इसके धन और माया" के आधार पर योग विशेषज्ञों ने पहला धन निरोगी शरीर को माना है। एक स्वस्थ्य व्यक्ति जहाँ अपने आय के साधनों का विकास कर सकता है, वहीं अधिक परिश्रम से व्यक्ति अपनी प्रतिव्यक्ति आय को भी बढ़ा सकता है। जबकि दूसरी तरफ शरीर में किसी प्रकार का रोग न होने के कारण व्यक्ति का औषधियों व उपचार पर होने वाला व्यय भी नहीं होता है। योगाभ्यास से व्यक्ति में एकाग्रता की वृद्धि होने के साथ -साथ उसकी

सेतुबंधासन करते समय सावधानियां

अन्य योग मुद्रा की तरह सेतु बंधासन करने से भी फायदों के साथ इसका नुकसान भी हो सकता है। इसलिए इस आसन का अभ्यास करने से पहले सावधानी बरतना जरूरी होता है।
प्रेगनेंट महिलाएं सेतु बंधासन कर सकती हैं लेकिन उन्हें योगा एक्पर्ट की देखरेख में ही यह आसन करना चाहिए।
यदि आपके घुटनों में गंभीर दर्द हो तो इस आसन को न करें।
सेतु बंधासन का अभ्यास करते समय अपने सिर को दाएं और बाएं घुमाने से बचें।
यदि आपके गर्दन, पीठ, कंधे एवं कमर में चोट लगी हो तो सेतु बंधासन का अभ्यास न करें।

सेतुबंधासन के लाभ मासिक धर्म में

माना जाता है कि सेतु बंधासन स्त्रियों में मासिक धर्म के दौरान होने वाले दर्द को दूर करने में बहुत सहायक होता है। यह अधिक उम्र की स्त्रियों में मेनोपॉज के लक्षणों को दूर करने में प्रभावी रूप से कार्य करता है। गर्भवती महिलाओं के लिए भी यह आसन अच्छा माना जाता है।

अच्छे पाचन में सेतुबंधासन के फायदे

सेतुबंधासन पाचन अंगो (digestive organs)  विशेषरूप से कोलन का मसाज करने का काम करता है इसलिए इस आसन का प्रतिदिन अभ्यास करने से पाचन क्रिया ठीक रहती है।

सेतुबंधासन के फायदे थॉयराइड की समस्या में

सेतुबंधासन करते समय फेफड़े खुलते हैं और इस कारण थॉयराइड से जुड़ी समस्याओं से छुटकारा मिलता है। इस आसन को करने से नितंब मजबूत होते हैं और थके हुए पैरों को भी राहत मिलती है। इसके अलावा यह अर्थराइटिस को दूर करने में भी मदद करता है।

सेतुबंधासन के फायदे डिप्रेशन दूर करने में

इस आसन का प्रतिदिन और सही तरीके से अभ्यास करने से डिप्रेशन, स्ट्रेस और चिंता दूर हो जाती है और व्यक्ति का मस्तिष्क शांत रहता है। मन को शांत रखने के लिए सेतु बंधासन काफी लोकप्रिय आसन माना जाता है। माइग्रेन की समस्या को दूर करने में भी यह आसन बहुत सहायक होता है।

मांसपेशियों को मजबूत बनाने में सेतुबंधासन के फायदे

सेतु बंधासन करने से पीठ की मांसपेशियां लचीली (flexible) और मजबूत होती हैं। यह मांसपेशियों में खिंचाव (stretch) उत्पन्न करता है और मांसपेशियों में तनाव से राहत प्रदान करने में मदद करता है। इसके अलावा यह आसन रीढ़ की हड्डी, सीने(chest) और गर्दन में खिंचाव उत्पन्न कर उन्हें टोन करने का काम करता है।

“योग विज्ञान है” – ओशो

 योग विज्ञान है, विश्वास नहीं। योग की अनुभूति के लिए किसी तरह की श्रद्धा आवश्यक नहीं है। योग का इस्लाम, हिंदू, जैन या ईसाई से कोई संबंध नहीं है। 

जिन्हें हम धर्म कहते हैं वे विश्वासों के साथी हैं। योग विश्वासों का नहीं है, जीवन सत्य की दिशा में किए गए वैज्ञानिक प्रयोगों की सूत्रवत प्रणाली है। इसलिए पहली बात मैं आपसे कहना चाहूंगा वह यह कि  योग विज्ञान है, विश्वास नहीं। योग की अनुभूति के लिए किसी तरह की श्रद्धा आवश्यक नहीं है। योग के प्रयोग के लिए किसी तरह के अंधेपन की कोई जरूरत नहीं है।

नास्तिक भी योग के प्रयोग में उसी तरह प्रवेश पा सकता है जैसे आस्तिक। योग नास्तिक-आस्तिक की भी चिंता नहीं करता है। विज्ञान आपकी धारणाओं पर निर्भर नहीं होता; विपरीत, विज्ञान के कारण आपको अपनी धारणाएं परिवर्तित करनी पड़ती हैं। कोई विज्ञान आपसे किसी प्रकार के बिलीफ, किसी तरह की मान्यता की अपेक्षा नहीं करता है। विज्ञान सिर्फ प्रयोग की, एक्सपेरिमेंट की अपेक्षा करता है।