सेतुबंधासन के फायदे
यह एक सामान्य आसन है और कोई भी व्यक्ति इस आसन का अभ्यास बहुत आसानी से कर सकता है। सेतु बंधासन करने में अधिक कठिनाई नहीं होती है और यह शरीर की कई समस्याओं को दूर करने में बहुत मदद करता है। आइये जानते हैं कि सेतु बंधासन करने के फायदे क्या हैं।
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सेतुबंधासन करने की विधि
- सबसे पहले जमीन पर पीठ के बल लेट जाएं।
- इसके बाद अपने घुटनों को मोड़ें या झुकाएं और अपने पैरों और कूल्हों (hip) के बीच जमीन पर दूरी बनाए रखें।
- श्रोणि (pelvis) से दूरी 10 से 12 इंच होनी चाहिए और इसके साथ ही पैरों के घुटने और एड़ियां एक सीधी रेखा में होनी चाहिए।
- इसके बाद कूल्हों और घुटनों को ऊपर उठाए हुए पोजिशन में ही अपने हाथों के दोनों भुजाओं (arms) को अपने शरीर के नीचे ले जाएं और दोनों हथेलियों को एक दूसरे से मिलाकर इंटरलॉक कर लें। हथेलियां जमीन को छूनी चाहिए।
- अब श्वास लें और हल्के से अपने पीठ के निचले हिस्से को जमीन से ऊपर उठायें। इस दौरान आपके प
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सेतुबंधासन करने का तरीका, फायदे और सावधानियां
जानिए सेतुबंधासन करने की विधि, सेतुबंधासन के फायदे, लाभ के बारे में, सेतु बंधासन संस्कृत भाषा का शब्द है जहां सेतु का अर्थ पुल(Bridge), बंध का अर्थ बांधना (Lock) और आसन का अर्थ मुद्रा (Posture) से है। इस आसन को अंग्रेजी में ब्रिज पोज (Bridge Pose) कहा जाता है। इस आसन को सेतुबंधासन इसलिए कहा जाता है क्योंकि इस आसन का अभ्यास करते समय शरीर पुल की आकृति (Pose) बनाता है। सेतुबंधासन एक ऐसा आसन है जो थॉयराइड, कमर दर्द और तंत्रिता तंत्र (nervous system) सहित शरीर की कई अन्य समस्याओं को दूर करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
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Quarter Sit Up
Serratus Anterior Press Up
Serratus Anterior Press Up
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शिल्पा शेट्टी योगा स्लिम कमर के लिए धनुरासन
इस आसन को करते समय शरीर धनुष के आकृति का बन जाता है। इस मुद्रा में पेट और जांघ धनुष के हिस्से के रूप में होता है और पैरों का निचला हिस्सा एवं भुजाएं धनुष के तने हुए हिस्से का काम करता है। यह एक बहुत ही महत्वपूर्ण आसन है जिसे करने पर कई तरह के फायदे होते हैं।
धनुरासन करने से वजन तो घटता ही है साथ में यह पीठ के निचले हिस्से (lower back) को मजबूत करता है, अस्थमा से बचाता है और रीढ़ (spine)को अधिक लचीला बनाने के साथ ही शरीर के कई हिस्सों को स्वस्थ रखता है।
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भुजंगासन करते समय सावधानियां
अगर किसी को अल्सर, हार्निया एवं क्षय रोग हो तो उसे भुजंगासन किसी भी परिस्थिति में नहीं करना चाहिए।
यदि आपको हाइपो थॉयराइड की समस्या है तो डॉक्टर के परामर्श के बाद ही इस आसन को करें।
अगर आपके पेट में कोई चोट लगी हो या फिर आप अस्थमा के मरीज हों तो आपको भुजंगासन से दूर रहना चाहिए।
गर्भवती स्त्री को किसी भी परिस्थिति में भुजंगासन को करने की कोशिश नहीं करनी चाहिए।
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व्याघ्रासन करने का तरीका
- पीठ के बल जमीन पर लेट जाएं और दोनों हाथों को जमीन पर टिकाते हुए शरीर को अत्यधिक ऊपर उठा लें।
- अपने एक पैर का घुटना कूल्हे के नीचे रखें और कलाई को कंधे के नीचे जमीन पर टिकाकर रखें। नजरों को सामने रखें और आराम के मुद्रा में रहें।
- श्वास लें और अपनी पीठ को कमान(arch) देते हुए धीरे से अपना दायां पैर ऊपर उठायें और और इसे ऊपर एवं पीछे की ओर खींचे।
- सीने को फैलाएं और पैरों की उंगलियों को सिर के पीछे तक लाएं।
- दूसरे पैर का घुटने तक का भाग जमीन पर मुड़ा होना चाहिए और उसके बाद का हिस्सा जमीन पर फैला होना चाहिए।
- सिर को हल्का ऊपर की ओर मोड़े और दोनों
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व्याघ्रासन योगा कुल्हे और रीढ़ को मजबूत करने के लिए
इस योगासन का नाम व्याघ्रासन संस्कृत के दो शब्दों से मिलकर बना है जहां व्याग्र का अर्थ बाघ(tiger) और आसन का अर्थ मुद्रा(pose) है। बाघ जब गहरी नींद से उठता है और अपने शरीर को खिंचता है तो जो आकृति बनती है उसे ही व्याघ्रासन कहते हैं।
उत्तानपादासन के फायदे
इस आसन को करने से अपच(indigestion), एसिडिटी और कब्ज दूर हो जाता है एवं पेट के अंग मजबूत होते हैं।
यह आसन जांघों (thigh) और कूल्हों (hip) की मांसपेशियों को मजबूत बनाता है। (और पढ़े –नितंब/Butt को कम करने के लिए करें ये एक्सरसाइज)
अर्थराइटिस, कमर दर्द, डायबिटीज और हृदय रोगियों के लिए यह एक महत्वपूर्ण आसन है। यह आसन शरीर में ब्लड सर्कुलेशन को बढ़ाता है।
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“योग विज्ञान है” – ओशो
योग विज्ञान है, विश्वास नहीं। योग की अनुभूति के लिए किसी तरह की श्रद्धा आवश्यक नहीं है। योग का इस्लाम, हिंदू, जैन या ईसाई से कोई संबंध नहीं है।
जिन्हें हम धर्म कहते हैं वे विश्वासों के साथी हैं। योग विश्वासों का नहीं है, जीवन सत्य की दिशा में किए गए वैज्ञानिक प्रयोगों की सूत्रवत प्रणाली है। इसलिए पहली बात मैं आपसे कहना चाहूंगा वह यह कि योग विज्ञान है, विश्वास नहीं। योग की अनुभूति के लिए किसी तरह की श्रद्धा आवश्यक नहीं है। योग के प्रयोग के लिए किसी तरह के अंधेपन की कोई जरूरत नहीं है।
नास्तिक भी योग के प्रयोग में उसी तरह प्रवेश पा सकता है जैसे आस्तिक। योग नास्तिक-आस्तिक की भी चिंता नहीं करता है। विज्ञान आपकी धारणाओं पर निर्भर नहीं होता; विपरीत, विज्ञान के कारण आपको अपनी धारणाएं परिवर्तित करनी पड़ती हैं। कोई विज्ञान आपसे किसी प्रकार के बिलीफ, किसी तरह की मान्यता की अपेक्षा नहीं करता है। विज्ञान सिर्फ प्रयोग की, एक्सपेरिमेंट की अपेक्षा करता है।